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विपाकचन्द्रिका टीका, श्रु० १, अ० ८, शौर्यदत्तवर्णनम्
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साधुओं के समीप धर्म-श्रवण करते हुए बोधि का लाभ करेगा । फिर यह इस पर्याय से छूट कर सौधर्म स्वर्ग में देव और वहां से महाविदेह में जन्म लेकर सिद्धिगति को प्राप्त होगा । 'णिवखेवो' इस प्रकार श्री श्रमण भगवान महावीर स्वामीने इस अध्ययन का यह भाव फरमाया है । 'त्तिबेमि' जैसा मैंने भगवान से सुना है वैसा ही तुम से कहा है | सू० ८ ॥
॥ इति श्री विपाकश्रुतके दुःखविपाकनामक प्रथमश्रुतस्कन्ध की 'विपाकचन्द्रिका' टीका के हिन्दी अनुवाद में 'शौर्यदत्त ' नामक अष्टम अध्ययन सम्पूर्ण ॥ १-८ ॥
પુત્રરૂપે ઉત્પન્ન થઇ તે સ્થવિર–મુનિએની પાસેથી ધમ સાંભળીને મેાધિ–બીજના લાભ પ્રાપ્ત કરશે, પછી તે જીવ એ પર્યાયથી છુટીને સૌધ સ્વર્ગમાં દેવ–અને ત્યાંથી महाविछेडुमां कन्भ सहने सिद्धि गतिने यामथे. 'णिक्खेवो ' આ પ્રમાણે શ્રમણ્ भगवान महावीर स्वाभीमे मा अध्ययननो लाव उद्यो छे. ' त्तिबेमि' भगवान पासेथी જેવું મેં સાંભળ્યું છે તેવુંજ મેં તમને કહ્યું છે. (સૂ॰ ૯)
छति विषाश्रुतना 'दुःखविपाक ' नामना प्रथम श्रुतस्म्धनी ' विपाकचन्द्रिका' टीना शुभराती अनुवाहमां
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નામક આઠમું
शौर्यदत्त ' અધ્યયન સમ્પૂર્ણ ! ૧૦૮ ૫
શ્રી વિપાક સૂત્ર