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________________ विपाकचन्द्रिका टीका, श्रु० १, अ० ८, शौर्यदत्तवर्णनम् ६११ मत्स्यान् ‘तलिए भन्जिए सोल्लिए य' तलितान् भर्जितान् शौल्यान्-शूलपक्वांश्च 'आहारेमाणस्स' आहारयतः भुञ्जानस्य 'मच्छकंटए' मत्स्यकण्टकः 'गलए' गलेगलबिले 'लग्गे यावि' लग्नश्चापि 'होत्था' अभवत् । 'तए णं से सोरियदत्ते मच्छंधे' ततः खलु स शौर्यदत्तो मत्स्यबन्धः 'महयाए वेयणाए' महत्या वेदनया 'अभिभूए समाणे' अभिभूतः पीडितः सन 'कोडुंबियपुरिसे' कौटुम्बिकपुरुषान् = स्वकर्मकरपुरुषान् 'सद्दावेई' शब्दयति 'सदावित्ता' शब्दयित्वा ‘एवं वयासी' एवमवादीत् 'गच्छह णं' गच्छत खलु 'तुब्भे देवाणुप्पिया' यूयं हे देवानुपियाः! 'सोरियपुरे णयरे' शौर्यपुरे नगरे 'सिंघाडन जाव पहेसु' शृङ्गाटकत्रिकचतुष्कचत्वरमहापथपथेषु महया२ सदेणं महतार शब्देन-उच्चस्वरेण उग्घोसेमाणार' उद्घोषयन्तः२ एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण 'वयह' वदत-' एवं खलु देवाणुप्पिया' एवं खलु हे देवानुप्रियाः ! 'सोरियदत्तस्स' शौर्यदत्तस्स 'मच्छकंटए' मत्स्य. मछलियों को कि जो 'तलिए भज्जिए सोल्लिएय' तली हुई भुंजी हुई एवं शलों पर रख कर पकाई हुई थीं 'आहारेमाणस्स' खा रहा था 'मच्छकंटए गलए लग्गे यावि होत्था' तब गले में मछलियों का कांटा लग गया । 'तए णं से सोरियदत्ते मच्छधे महयाए वेयणाए अभिभूए समाणे' इससे उस शौर्यदत्त मच्छीमार ने बहुत ही प्रबल वेदना से आक्रन्त होकर 'कोडुंबियपुरिसे सदावेइ' अपने नौकर-चाकरों को बुलाया । 'सदावित्ता एवं वयासी' और बुलाकर इस प्रकार कहा 'गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! सेोरियपुरे णयरे सिंघाडग जान पहेसु' हे देवानुप्रिय! आप लोग शौर्यपुर नगर में जाओ, ओर शृङ्गाटक आदि मार्गों में 'महयार सद्दणं उग्घोसेमाणा२ एवं वयह ' बडे२ जोर के शब्दों से यह घोषणा करो कि "एवं खलु देवाणुप्पिया ! सोरियदत्तस्स मच्छकंटए गलए लग्गे' ' तलिए भज्जिए सोल्लिए ' तणेली, सुरेली अने त्रा: ५२ भान ५ही ती ते 'आहारेमाणस्स' मातो तो, तेवामा मच्छकंटए गलए लग्गे यावि होत्था' तनां मां भाछमीन iटे साध्य. 'तए णं से सोरियदत्ते मच्छंधे महयाए वेयणाए अभिभूए समाणे' तेथी ते शोहत्त भन्छीमा२ घlar ॥३५ वेहनाथी मा- मनीने 'कोडुंबियपुरिसे सदावेइ' पोताना ना३२ या२ने पोताना पासे मोसाव्यो, 'सदावित्ता एवं बयासी' मालावीन मा प्रमाणे युं 'गच्छह गं तुब्भे देवाणुप्पिया ! सोरियपुरे णयरे सिंघाडग जाव पहेसु वानुप्रिय! तभेसी शीपुर नगरमा नया, भने शुट४ मा भाभि 'महयारसदेणं उग्रोसेमाणा२ एवं वयह ' मोटा-मोटाहार शहाथी मे घोषया ४३। ' एवं खल्लु देवाणुप्पिया ! सोरियदत्तस्स मच्छकंटए गलए लग्गे' है देवानुप्रियो ! શ્રી વિપાક સૂત્ર
SR No.006339
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages809
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vipakshrut
File Size44 MB
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