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________________ ५५२ विपाश्रुते 'उवदिसइ' उपदिशति = रोगप्रतिक्रियायां भक्षणार्थं कथयति । 'अप्पेगइयाणं ' अप्येकेषां 'कच्छभमसाई' कच्छपमांसानि उपदिशति । 'अप्पेगइयाणं' अप्येकेषां 'गोहामंसाई' ग्राहमांसानि ग्राहाणाम् = जलचरविशेषाणां मांसानि उपदिशति । 'अप्पेगइयाणं' अप्येकेषां 'मगरमंसाई' मकरमांसानि उपदिशति । 'अप्पेगइयाणं' अप्येकेषां ' सुमारमंसाई' सुंसुमार मांसानि सुंसुमाराः = जलचरविशेषास्तेषां मांसानि उपदिशति । अप्येकेषां 'अयमंसाई' अजमांसानि = उपदिशति । ' एवं ' अनेनैव प्रकारेण 'एलय - रोज्झ - सूयर - मिग-समय- गोमंस - महिसमंसाई उबदिसइ' एडक - रोज्झ - (गत्रय) - मूकर - मृग- शशक- गोमांस-महिषमांसानि स्थलचरमांसानि उपदिशति, तत्र - एडकः = मेषः, रोज्झः = गवयः, सुकरः = वराहः, मृगaant प्रसिद्धौ । 'अप्पेगइयाणं' अप्येकेषां 'तित्तिरसाई' तित्तिरमांसानि उप 6 रोग की प्रतिक्रिया के निमित्त खाने के लिये मत्स्य के मांस का उपदेश देता, 'मत्स्य के मांस खाने से यह रोग शांत हो जायगा' ऐसा कहता अप्पेगइयाणं कच्छभमंसाई ' किन्हीं२ से कहता कि - ' कच्छपका मांस खाओ तब यह रोग नष्ट होगा ? इसी प्रकार अप्पेगइयाणं गोहामसाई अप्पेगइयाणं मगरमंसाई, अप्पेगइयाणं सुंसुमारमंसाई, अप्पेगइयाणं अयमंसाई, एवं एलय - रोज्झ - स्थर - मिग-समय- गोमंस-महिसमंसाई ' किन्हीं२ को ग्राह के मांस खाने का, किन्हीं२ को मगर के मांस खानेका, किन्हीं २ को सुंसुमार (जलचर जीव ) के मांस खाने का, किन्हीं २ को बकरे के मांस खानेका, किन्हीं२ को मेढा के, रोझ के, सूकर के, मृगके, खरगोश के, गाय के और भैंसा के मांस खाने का उपदेश देता रहता था । किन्हीं२ से यह कहा करता था कि 'त्तित्तिरसाई' तुम तीतर का मांस मच्छमंसाई उवदेसेइ' अर्थ-अधने रोगना प्रतिडिया माटे मांछलानु मांस भावाना ઉપદેશ આપતા હતા; “ માંછલાંનું માંસ ખાવાથી આ રોગ શાંત થઇ જશે, ” એ प्रमाणे उडेतेा हतो. 'अप्पेगइयाणं कच्छभमंसाई' नेता -“छायमानुं भांस आओ। त्यारे या रोग नाश यामथे” से प्रमाणे 'अप्पेगइयाणं गोहामंसाई, अप्पेगइयाणं मगरमंसाई, अप्पेगइयाणं सुंसुमारमंसाई, अप्पेगइयाणं अयमंसाई, एवं - एलय - रोज्ज्ञ - सूयर - मिग - ससय- गोमंस-महिसमंसाई' - धने श्राहर्नु માંસ ખાવાનું, કાઇને મગરનું માંસ ખાવાનું, કેાઈને સુસુમાર (જલ જંતુ)નું માંસ भावानुं, ने शनुं मांस, अधने घेटानुं राजनुं सुवरनुं, भृगर्नु, भरगोशनुं, ગાયનું કે પાડા વગેરેનાં માંસ ખાવાનું કહેતા હતા કેટલાકને એમ કહેતા હતા કે, 'तित्तरसाई' तभे तेतरनु मांस मागे, 'अप्पेगइयाणं' भने डेटलाउने अडतो શ્રી વિપાક સૂત્ર
SR No.006339
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages809
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vipakshrut
File Size44 MB
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