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________________ विपाकचन्द्रिका टीका, श्रु० १, अ० ६, उदुम्बरदत्तवर्णनम् ५३५ शोथयुक्तचरणं 'सडियहत्थंगुलियं' शटितहस्ताङ्गलिकं 'सडियपायंगुलियं' शटितपादाङ्गलिक 'सडियकण्णणासियं' शटितकर्णनासिकं 'रसियाए य' रसिकया 'टितदुर्गन्धिविकृतरुधिरेण' 'पूयेण य' पूयेन शटितदुर्गन्धिविकृतरुधिरजलेन 'थिविथिवितं' थिविथिविशब्दं कुर्वन्तं 'वणमुहकिमिउण्णुयंतपगलंतपूयरुहिरं' व्रणमुखकम्युन्नुदल्पगलत्पूयरुधिरं-वणमुखात् कृमयः-उन्नुदन्तः प्रगलन्ति पूयरुधिराणि च यस्य स तथा तम् , यस्य व्रणमुखात् कृमयो बहिनिःसरन्ति उत्पत्य पतन्ति पूयरुधिराणि प्रगलन्ति तमित्यर्थः । 'लालामुहं' लालायुक्तमुख 'पगलंतकण्णणासं' प्रगलत्कर्णनासं-प्रगलन्तौ कौँ नासे च यस्य स तथा तम् , 'अभिक्खणं२' अभीक्ष्णं वारं वारं 'पूयकवले य' पूयकवलान्-शटितरुधिरकवलान् 'रुहिरकवले य' रुधिरकवलान् 'किमिकवले य' कृमिकवलांश्च ‘वममाणं' मुंह सूजकर जिसका फूल गया था। हाथ पांव जिसके सब ओर से खूब सूजे-फूले हुए थे। हाथों एवं पैरों की अंगुलिया जिसकी गल गई थीं 'सडियकण्णणासियं' कान एवं नाक भी जिसके बिलकुल सड चुके थे । 'रसियाए य प्रयेण य थिविथिवितं' सडे हए एवं विकृत खून से तथा पीव से जिसके शरीर में 'थिविथिवि' इस प्रकार का शब्द हो रहा था, 'वणमुहकिमिउण्णुयंतपगलंतपूयरुहिरं' जिसके घावों के अग्रभाग से कीडे टपक रहे थे और पीप भी जिन्हों से वह रही थी, 'लालामुहं लार से जिसका मुख सना हुआ था। 'पगलंतकण्णणासं' सडजाने से कान और नाक जिसके गिर चुके थे । 'अभिक्खणं २ पूयकवले य रुहिरकवले य किमिकवले य वममाणं' जो पीप और सडे हुए खून के कुल्लों का एवं कृमियों के ढेरों का बारबार वमन कर જેનું મુખ સુજીને કુલી ગયું હતું, જેના હાથ-પગ બહુજ સુજીને કુલી ગયા હતા, हाथ-पानी मनोमानी जी गई हता, "सडियकण्णणासियं ना आन भने न तमाम सही गया हुता, 'रसिया य पूरण य थिविथिवितं ' सही गये। भने उसाडीथी भने ५३थी । शरीरमा 'थिविथिवि' मा प्रा२ना शह थ। हो तो, 'वणमुहकिमिउण्णुयंतपगल्लंतपूयरुहिरं' ना धाना मन माथी श्री. ८५४ी २सा हुता, मने मेने ५३-पड़तु तु, 'लालामुहं ' ना भुममाथी सार ८५४ती उता, 'पगल्लंतकणण्णासं' न भने ना ना सही साथी तुटरी गया इता, 'अभिक्खणं२ पूथकवले य रुहिरकवले य किमिकवले य वममाणे' ५३ मने સડેલા લેહીના કુલ્લા (કાગળ) અને કૃમિના ઢગલાની વારંવાર વમન-ઉલટી કરતે શ્રી વિપાક સૂત્ર
SR No.006339
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages809
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vipakshrut
File Size44 MB
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