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विपाकश्रुते च्छित्ता पाडलिसंडे नयरे' उपागत्य पाटलिपण्डे नगरे 'पुरस्थिमेणं दुवारेणं' पौरस्त्येन द्वारेण-पूर्वदिगवस्थितेन द्वारेण 'अणुप्पविसइ' अनुपविशति, 'तत्थ गं' तत्र खलु 'पासइ' पश्यति 'एगं पुरिसं' एकं पुरुषं, कीदृशम् ? इत्याह'कच्छूल्लं' कच्छू नन्तं-कण्डूयनरोगयुक्तं 'कोढियं' कुष्ठिनं कुष्ठरोगयुक्तं 'दोउयरियं' द्वयौदरिकं-द्वे उदरे इव उदरं यस्य स तथा तम् जलोदररोगयुक्तम् , 'भगंदलियं' भगन्दरिकं भगन्दररोगयुक्तम् , 'अरिसिल्लं' अविन्तम् अरोगयुक्तम् , 'कासिल्लं' कासवन्तं कासरोगयुक्तं, 'सासिल्लं' श्वासवन्तं श्वासरोगयुक्तं, सोफिल्लं' शोफवन्तं शोफरोगयुक्तं, 'सूयमुहं शूनमुखं शुन-शोथयुक्तं, मुख यस्य स तथा तम् , एवमग्रेऽपि 'सूयहत्य' शूनहस्त-शोथयुक्तहस्तम् , 'मूयपाय' शूनपाद= समय में भगवान के बडे शिष्य गौतमस्वामी पूर्व अध्ययनों में कथित विधि के अनुसार प्रभु से नगरमें गोचरी को जानेकी आज्ञा प्राप्त कर रवाना हुए 'उवागच्छित्ता पाडलिसंडे नयरे पुरिथमेणं दुवारेणं अणुप्पविसइ' वे उस नगर के पूर्व दिशा में रहे हुए दरवाजे से प्रविष्ट हुए । तत्थ णं पासइ एगं पुरिसं' प्रविष्ट होते हैं कि वहां उन्होंने एक ऐसे पुरुष को देखा जो 'कच्छुल्लं, कोढियं, दोउयरियं, भगंदलियं अरिसिल्लं, कासिल्लं, सासिल्लं, सोफिल्लं, मूयमुई, म्यपायं, सडियहत्थंगुलियं, सडियपायंगुलियं' खाज से युक्त हो रहा था, समस्त शरीर भर में जिसके कोढ चू रहा था, दो पेट के जैसा जिसका पेट था-जलोदर रोग से जो पीडित था । भगंदर जिसे हो रहा था । बवासीर से जो अत्यंत कष्ट में था। खासी जिसे क्षण२ में चल रही थी । श्वास की जिसे बीमारी थी। शरीर भर में जिसके सूजन आगई थी। ભગવાનના મોટા શિષ્ય ગૌતમ સ્વામી આગળના અધ્યયનમાં કહેલી વિધિ પ્રમાણે प्रभु पासेथी नाम शायरी ४२वा भवानी माज्ञा प्राप्त ॐशन २वाना थया. 'उवागच्छित्ता पाडलिसंडे नयरे पुरथिमेण दुबारेण अणुप्पविसइ' गौतमस्वामी, ते नानी पूर्व हिशान ४२पाथी प्रवेश यो, 'तत्थ णं पासइ एगं पुरिसं, प्रवेश ४२di भए त्यi 101 मे पुरूषन नये ते 'कच्छुल्लं, कोढियं, दोउयरियं, भगंदलियं, आरिसिल्लं, कासिल्लं, सासिल्लं, सेोकिल्लं, सूयमुहं, सूयपाय, सडियहत्थंगुलियं, सडियपायंगुलियं,' irala सहित डतो. मामाये शरीरमा કોઢ થયે હતે. પેટ એકદમ મોટું હતું, જલદર રોગથી પીડાતા હતા, જેને ભગંદર થયેલું હતું, બવાસીરના રોગથી બહુજ કષ્ટ થતું, ખાંસી જેને ઘડીએ-ઘડીએ આવતી હતી, જેને શ્વાસ રોગની બીમારી હતી, તમામ શરીરમાં જેને સેજે આવી ગયું હતું.
શ્રી વિપાક સૂત્ર