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________________ विपाकचन्द्रिका टीका, श्रु० १, अ० ६, नन्दिसेनवर्णनम् ४८१ ‘एवं खलु जंबू ! एवं खलु हे जम्बूः ! — तेणं कालेणं तेणं समएणं' तस्मिन् काले तस्मिन् समये 'महुरा नयरी' मथुरानगरी आसीत् , तत्र 'भंडीरे उजाणे' भण्डीरमुद्यानम् 'सुदरिसणे जक्खे' सुदर्शनः-सुदर्शन-नामको यक्ष आसीत् । तत्र 'सिरिदामे राया' श्रीदामराजा आसीत् । तस्य-बंधुसिरी भारिया' बन्धुश्रीर्भार्या आसीत् । तयोः 'पुत्ते' पुत्रः ‘णंदिसेणे णामं कुमारे' नन्दिसेनो नाम कुमारः आसीत् । स कीदृश इत्याह-'अहीण' इति । अहीनपरिपूर्णपश्चेन्द्रियशरीरः 'जाव जुवराया' यावत् युवराजः । 'तस्स णं' तस्य खलु "सिरिदामस्स रणो' श्रीदाम्नो राज्ञः 'सुबंधू णाम' सुबन्धुर्नाम 'अमच्चे' अमात्यः 'होत्था' आसीत् , स कीदृशः ? 'सामभेयदंड०' 'सामभेयदंड-उवप्प हे जम्बू ! 'छट्ठस्स उक्खेवो' छठवें अध्ययन का उपोद्घात यहां करना चाहिये। __ 'तेणं कालेणं तेणं समएणं' उस काल में एवं उस समय में 'महुरा णयरी' मथुरा नामकी नगरो थी। 'भंडीरे उज्जाणे' उसमें भंडीर नाम का उद्यान था 'सुदरिसणे जक्खे उस उद्यान में सुदर्शन नाम का एक यक्ष रहता था । सिरिदामे राया' मथुरा नगरी के राजा का नाम श्रीदाम था। 'बंधुसिरी भारिया' इस राजा की रानी का नाम बंधुश्री था। 'पुत्ते णंदिसेणे णाम कुमारे' इसके पुत्र का नाम नंदिसेन कुमार था । 'अहीण जाव जुवराया' इसका शरीर बडा ही सुन्दर था। राजा ने इसे यवराज पद पर अभिषिक्त कर दिया था। 'तस्स णं सिरिदामस्स रणो सुबंधू णामं अमच्छ होत्था' श्री दाम राजा का सुबंधु नाम का एक अमात्य था । 'सामभेयदंड उवप्पयाणणीति सुप्पउत्तणयविहिन्नू' साम, भेद, न्यू ! 'छट्ठस्स उक्खेवो' छ&l अध्ययन GA५-Sपोधात मी नये. न्यू तेणं कालेणं तेणं समएणं ' ते १ भने त समय विष 'महुरा णयरी' भथु। नभनी नगरी ती 'भंडीरे उज्जाणे तमा २ नामना माया तो 'सिरिदामे राया' ते मथु। नगरीनi Pok नाम श्रीराम स्तु 'बंधुसिरी भारिया' onनी २०ीन नाम मधुश्री हेतु 'पुत्ते णंदिसेणे णामं कुमारे' तेन पुत्रनुं नाम नहिसेन शुमार हेतु. 'अहीण जाव जुवराया' तेनुं शरीर ઘણું જ સુંદર હતું. અને રાજાએ તેને યુવરાજ પદ પર અભિષિક્ત કરી દીધા હતા. 'तस्स णं सिरिदामस्स रण्णो सुबंध णामं अमच्चे होत्या ' श्रीहम सतन भुमधु नामना मंत्री प्रधान Cl. 'सामेभेयदंडउवप्पयाणणीतिसुप्पउत्तणयविहिन्न' શ્રી વિપાક સૂત્ર
SR No.006339
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages809
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vipakshrut
File Size44 MB
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