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________________ ४५४ विपाकश्रुते मियसमिद्धा' ऋद्धस्तिमितसमृद्धा, तत्र ऋद्धा-नभःस्पर्शिबहप्रासादः बहलपौरजनैश्च वृद्धिमुपगता, स्तिमिता-स्वचक्रपरचक्रादिभयरहितत्वेन स्थिरा, समृद्धा धनधान्यादिपूर्णा 'बाहि' बहिः तस्या नगर्या बहिर्भागे 'चंदोत्तरणे उजाणे' चन्द्रोत्तरणमुद्यानं, 'तत्थ' तत्र 'सेयभदे जक्खे' श्वेतभद्रो यक्ष आसीत् । 'तत्थ णं कोसंबीए णयरीए' तत्र खलु कौशाम्ब्यां नगया 'सयाणीया णाम राया होत्था' शतानीको नाम राजा आसीत् । स कीदृशः ? इत्याह-'महयाहिमवंत०' महाहिमवन्महामलयमन्दरमहेन्द्रसारः = धैर्यगाम्भीर्यमर्यादादिगुणसम्पन्नः, इत्यादि । 'तस्स णं सयाणियस्स' तस्य खलु शतानीकस्य 'रण्णो पुत्ते' राज्ञः पुत्रः 'मियाबईए देवीए अत्तए उदये णामं कुमारे होत्था' मृगावत्या देव्या आत्मजः उदयनो नाम कुमार आसीत् । कीदृशः ? इत्याह-'अहीण.' अहीनपरिपूर्णपश्चेन्द्रियशरीरः, अहीनपरिपूर्णपञ्चेन्द्रिययुक्तशरीरवान् , 'जाव सव्वंगसुंदरंगे' यावत् एक नगरी थी । जो 'रिद्धस्थिमियसमिद्धा' नभस्तलस्पर्शी प्रासादों एवं बहुल पौरजनों से वृद्धिगत थी। जिसमें वसनेवाली जनता को किसी भी तरह से स्वचक्र और परचक्र का थोडासा भी भय नहीं था। जनता यहां की सदा धन-एवं धान्य आदि से परिपूर्ण थी। 'बाहि चदोत्तरणे उज्जाणे' इस नगरी के बाहर चंद्रोत्तरण नाम का एक उद्यान था। 'सेयभद्दे जक्खे उसमें श्वेतभद्र नामका एक यक्ष था । 'तत्थ णं कोसंबीए पयरीए सयाणीए णामं राया होत्था' उसी कौशांबी नगरी में शतानीक नाम का एक राजा था । 'महयाहिमवंत०' यह धैर्य, गांभीर्य, एवं मर्यादादि अनेकगुणों से संपन्न था । 'तस्स णं सयाणीयस्स रण्णो पुत्ते मियावईए देवीए अत्तए उदयणे णामं कुमारे होत्था' उस शतानीक राजा का पुत्र जो मृगावती देवी की कुक्षि से उत्पन्न हुआ था सो उदयन नाम का था । 'अहीण जाव सव्वंगसुदरंगे' इसका शरीर अहीन एवं परिपूर्ण इती २ 'रिद्धस्थिमियसमिद्धा' माशिनी स्पश ४३ मेवा या-या महतो भने ઘણીજ વસ્તીથી ભરપૂર હતી. તે નગરીમાં નિવાસ કરનારી પ્રજાને સ્વચક્ર અને પરચક્રનો કોઈ પ્રકારે ભય ન હતું. ત્યાંની પ્રજા હમેશાં ધન-ધાન્ય વડે પરિપૂર્ણ હતી. 'बाहिं चंदोत्तरणे उज्जाणे ते नाशनी महार यादोत्तर नामनी मे मनाया तो 'सेयभद्दे जक्खे 'तमा श्वेतमा नामनी में यक्ष हो ' तत्थ णं कोसंबीए णयरीए सयाणीए णाम राया होत्था' भी नगरीमा शतानी नामना मे २०॥ तो, 'महयाहिमवंत' ते धैर्य, लीय, मने भा भने गुणेथी सपन्न हता. ' तस्स णं सयाणीयस्स रण्णा पुत्ते मियावईए देवीए अत्तए उदयणे णामं कुमारे होत्था' त शतानी २ भृती वानi Rथी उत्पन्न શ્રી વિપાક સૂત્ર
SR No.006339
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages809
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vipakshrut
File Size44 MB
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