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________________ 3 - विपाकचन्द्रिका टीका, श्रु० १, अ० ३, अभग्नसेनपूर्वभववर्णनम् टीका । 'तए णं' इत्यादि । 'तए णं से महब्बले राया कोडुंबिय पुरिसे सदावेइ सहावित्ता' ततः खलु स महाबली राजा कौटुम्बिकपुरुषान् शब्दयति-आत्यति शब्दयित्वा=आहूय 'एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण, 'वयासी' अवादीत्-'गच्छह णं तुम्हे देवाणुप्पिया ! पुरिमतालस्स गयरस्स' गच्छत खलु यूयं हे देवासुपियाः ! पुरिमतालस्य नगरस्य 'दुवाराई' द्वाराणि निर्गमप्रवेशमार्गान् 'पिहेह' पिधत्त, 'अभग्गसेणं चोरसेणावई' अभग्नसेनं चोरसेनापति 'जीवग्गाहं गिलह' जीवग्राह गृहाण-जीवन्तं गृहाणेत्यर्थः। गिह्नित्ता' गृहीत्वा 'ममं उवणेह' मामुपनयतमत्समीपमानयतेत्यर्थः । 'तए णं ते कौडेबिय पुरिसा करयल जाव पडिसुऐति' ततः खलु ते कौटुम्बिकपुरुषाः करतलपरिगृहीतं यावत् प्रतिशण्वन्ति= 'तए णं से महब्बले०' इत्यादि। 'तए णं' अभग्नसेन एवं उसके साथियों के बेहोश होने के बाद से महब्बले राया' उस महाबल राजा ने कोडुबियपुरिसे सहावेई' कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया 'सदावित्ता' बुलाकर "एवं बयासी' फिर ऐसा कहा- 'गच्छह णं देवाणुप्पिया! हे देवानुप्रिय ! तुम जाओ, और 'पुरिमतालस्स णयरस्स दुवाराई पिहेह' पुरिमताल नगर के समस्त दरवजो को बंद कर दो । तथा अभग्गसेणं चोरसणावई' अमग्नसेन चोरसेनापति को 'जीवग्गाहं गिढ़ह' जीवित ही पकडलो गिता ममं उवणेह' पकडकर उसे मेरे पास ले आओ । 'तए गं' नृपका यह आदेश सुनने के पश्चात् 'ते कोडुबियपुरिसा करयल० जाव पडिसुर्णेति' उन कौटुम्बिक पुरुषों ने राजा के प्रदत्त आदेश को बडी भक्ति के साथ 'तए णं से महब्बले 'त्या. 'तए णं' ममनसेन तथा तना साथीमान या पछी ‘से महब्वले राया' ते भलाम शो 'कोडुंबियपुरिसे सदावेई' ४ि घवान माया सदावित्ता' लावीन 'एवं वयासी' पछी म प्रमाणे ४ह्य 'गच्छह णं देवाणुप्पिया !' वानुप्रिय! तमे नया 'पुरिमतालस्स णयरस्स दुवाराई पिहेह' पुरिभास नगन तमाम ४२पानमाने मय हो, तथा 'अभग्गसेणं चोरसेणावई' समानसेन या सेनापतित 'जीवग्गाहं गिलह' तो ४ ५४ी बी. 'गिह्नित्ता ममं उवणेह' ५४ी ने भारी पासे as यावी. 'तए णं' न म प्रा२ना हुभने साजाने पछी 'ते कोडुबियपुरिसा करयल० जाव पडिमुणेति' गेमि पुरुषोन्मे रामे मासा हुभने भडान શ્રી વિપાક સૂત્ર
SR No.006339
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages809
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vipakshrut
File Size44 MB
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