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________________ विपाकश्रुते 'गणियावरनाडइज्जकलियं ' गणिकावर नाटकीयकलितं = गणिकावरैर्नाटकपात्रैश्च कलितो यः स तथा तम्, 'अणेगतालायराणुचरियं' अनेकतालाचरानुचरितम्अनेकैः, तालाचरैः=प्रेक्षकविशेषैः तालदायकैरित्यर्थः, अनुचरितम् = आसेवितमित्यर्थः, 'पमुइयपक्कीलियाभिरामं प्रमुदितप्रक्रीडिताभिरामम् = प्रमुदितैः = महर्षेः प्रक्रीडितैः = प्रक्रीडनैश्चाभिरामं = मनोहरम् 'महरिहं' महाई = महतां योग्यम्, 'दसरत्तं' दशरात्रं =दशाहोरात्र व्यापकम् 'पमोयें' प्रमोदम् = हर्षम् = उत्सवम्, 'उग्घो सावेइ' उद्घोषयति, स्वपुरुषैरुद्धोषणां कारयतीत्यर्थः । ' उग्घोसावित्ता को डुंबिय - पुरिसे सदावे' उद्घोषयित्वा, कौटुम्बिक पुरुषान् शब्दयति=आहयति, 'सदावित्ता' 'गाणियावर नाडइज्जकलियं' वेश्याओं एवं नाटक करने वालों के नाच, गान एवं अभिनय, इस अवसर पर देखने को मिलेंगे । 'अणेगतालायराणुचरियं' तालविद्या में निपुण जनों का यहां अच्छा जमघट्ट रहेगा, 'मुझ्यपक्कीलियाभिरामं' अनेक प्रकार के खेल और तमाशे यहां जनता को दिखलाये जायेंगे, जनता के प्रत्येक आवश्यकीय कार्यों की एवं उसकी सुखसुविधा की यहां सुन्दर से सुन्दर व्यवस्था की जावेगी, 'महरिह' इसे जहां तक हो सकेगा दर्शनीय एवं अनुकरणीय बनाने की हर तरह से चेष्टा की जायगी । 'दसरत्तं पमोयं उग्घोसावेइ' वह उत्सव दश दिन तक होगा इस प्रकार राजाने अपने जनों द्वारा उत्सव की घोषणा कराई । 'उग्घोसावित्ता' इस घोषणा के हो चुकने पर फिर राजा ने 'कोडबियपुरिसे सद्दावेड' अपने आज्ञाकारी पुरुषों को अपने निकट बुलवाया 'सावित्ता' और बुला कर ' एवं ३७२ हुआनो पशु त्यां जेवामां आवशे. 'गणियावर नाडइज्ज कलियं વેશ્યાએ અર્થાત્ નાટક કરનારામને નાચ, ગાયન અને અભિનય, આ અવસર ઉપર लेवा गजशे, अणेगताळायराणुचरियं ' તાલવિદ્યામાં કુશળ માણસોની અહીં सारी शते न्यावट थशे. 'पमुइयपक्की लियाभिरामं ' અનેક પ્રકારના ખેલ અને તમાસા અહીં માણસોને બતાવવામાં આવશે. માણસોની તમામ પ્રકારની જરૂરીઆતા અને તેના સુખ માટે અહીં સારામાં સારી ગોઠવણ કરવામાં આવશે. महरिहं ' तेने मनशे त्यां सुधी दर्शनीय अर्थात् अनुरागीय मनाववा भाटे हरे अझरना प्रयत्न वामां आवशे 'दसरतं पमोयं उग्घोसावेइ ' ते उत्सव हस દિવસ સુધી ચાલશે આ પ્રમાણે રાજાએ પોતાના માણસો દ્વારા ઉત્સવની घोषणा-महेरात उरावी. ' उग्वासावित्ता' मा प्रभाो घोषणा उराव्या पछी ईरीथा शक्तये ' कोडुंबियपुरिसे सहावेइ' येतानी माज्ञाभां रहेनारा पुरुषोने पोतानी पासे मोसाच्या 'सद्दावित्ता' जोसावीने ' एवं वयासी આ प्रभारी अधु - 6 , " શ્રી વિપાક સૂત્ર "
SR No.006339
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages809
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vipakshrut
File Size44 MB
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