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________________ - विपाकचन्द्रिका टीका, श्रु० १, अ० २, उज्झितकपूर्वभवगोत्रासवर्णनम् २४७ मूलम् ॥ तए णं से गोत्तासे दारए कडग्गाहे कल्लाकलिं अद्धरत्तकालसमयंसि एगे अबीए सण्णद्धबद्धकवए जाव गहियाउहपहरणे साओ गिहाओ णिजाइ, णिजित्ता जेणेव गोमंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बहूगं णयरगोरूवाणं सणाहाण य जाव वियंगेइ, वियंगित्ता जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ । तए णं से गोत्तासे कूडग्गाहे तेहिं बहुर्हि गोमंसेहि सोल्लेहि सुरं च ६ आसाएमाणे ४ विहरइ ॥ सू० १२ ॥ टीका 'तए णं' इत्यादि । 'तए णं से गोत्तासे दारए कूडग्गाहे' ततः खलु स गोत्रासो दारकः कूटग्राहः 'कल्लाकलि' कल्याकल्यम्-प्रतिदिनम् 'अद्धरत्तकालसमयंसि' अर्धरात्रिकालसमये-मध्यरात्रे 'एगे' एकः-एकाकी सहायह भी अपने पिता के स्थान पर बैठते ही उस जैसा कूटग्राह बन गया । जैसा वह महा अधार्मिक एवं दुष्प्रत्यानंदी था, ठीक उसी तरह का यह भी उसकी प्रतिच्छाया की तरह लोगों की दृष्टि में आ गया । सू० ११ ॥ 'तए णं से गोत्तासे' इत्यादि'तए णं' इसके बाद से गोत्तासे दारए' वह गोत्रास दारक जो कूटग्राहपने से प्रसिद्ध हो चुका था, 'कलाकलिं' प्रतिदिन 'अद्वरत्तकालसमयंसि' अर्धरात्रि के समय उठकर 'एगे' अकेला ही विना किसी સ્થાન પર બેસતાં જ તેના પિતા જે કુટગ્રાહ બની છે. જે પિતા અધમી અને દુપ્રત્યાનંદી હતું, બસ તેવી જ રીતે આ પણ તેની પ્રતિષ્ઠાયાની માફક લોકેની દષ્ટિમાં આવી ગયે, અર્થાત્ બીજે ભીમ ફટચાહ હોય તેમ લેકમાં દેખાવા લાગે. (સૂ૦૧૧) तए णं से गोत्तासे, त्यादि. 'तए णं' ते पछी ‘से गोत्तासे दारए' ते मात्र ४२४ रे यूटया vieी प्रसिद्ध यो छतो, 'कल्लाकल्लि' प्रतिहिन 'अद्धरनकालसमयंसि' अविना समये ही 'एगे' हो -lon / भाष्यसनी सहायता विना શ્રી વિપાક સૂત્ર
SR No.006339
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages809
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vipakshrut
File Size44 MB
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