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________________ २२८ विपाकथुते 9 लीकृतमित्यर्थः । कस्ता अम्बाः ? इत्याकाङ्क्षायामाह - 'जाओ णं' इत्यादि । 'जाओ णं' या खलु अम्बाः, 'बहूणं' बहूनां = बहुविधानां, 'णयर गोरूवाणं' arrataपाणां 'सणाहाण य' सनाथानां च 'जाव बसभाण य' यावद् वृषभाणाम् अत्र यावच्छब्देन - अनाथानां नगरगवीनां बलीवर्दानां, नगरपड्डिकानां= बालमहिषीणाम्, नगरमहिषीणां, नगरमहिषाणां, नगरनुपभाणाम् इति बोध्यम्, 'ऊहि य' ऊधोभिच गवादीनां स्तनोपरिभागैः, 'थणेहि य' स्तनैश्व 'बसणे हि य' वृषणै: = अण्डकोशैव, 'छिप्पाहि य' पुच्छैश्व, 'छिप्पा' इति देशीयः शब्दः पुच्छवाचकः, 'ककुएहि य' ककुदैश्व 'वहेहि य' at := स्कन्धैश्व, 'कण्णेहि य' कर्णेश्च, अक्खीहि य' अक्षिभिश्च, 'णासाहि य' नासाभिच, 'जिन्भाहि य' जिह्वामिव 'ओहि य' ओष्ठैव, कंबलेहि य' कम्बलैः = मास्नाभिच, 'सोल्लेहि य' पक्वैः संदंशनेन वह्निपक्वैश्व, 'तलिएहि य' तलितैः = तैले घृते वा पक्वैश्व, 'भजिएहि य' भर्जितैश्च, 'परिसुक्केहि य' परिशुष्कैच, 'लावणिएहि य' फल अच्छी तरह पाया है, 'जाओ णं बहूणं णयरगोरूवाणं सणाहाण य जाव वभाण य' जो नगर निवासी अनेक सनाथ एवं अनाथ गाय आदि से लेकर सांड पर्यन्त जानवरों के 'ऊहेहि य' स्तन के उपर के भाग 'थणेहि य' स्तन, 'वसणेहि य' अंडकोश, 'छिप्पाहि य' 'ककुएहि य' ककुद 'वहेहि य' स्कंध, कण्णेहिय कान 'अक्खीहिय' पुच्छ, आँख, 'णासाहि य' नाक, 'जिन्भाहि य' जिह्वा, 'ओट्ठेहि य' ओष्ठ और 'कंबलेहि य' सास्ना ( गले के नीचे लटकती हुई चमडी) ये सभी काट-काट कर लाये हुए हों, और फिर से 'सोल्लेहि य' संडासी द्वारा अग्नि में पके हुए हों, 'तलिएहि य' तैल अथवा घृत में तले गये हों, ' भजिएहि य' भूंजे गये हों, 'परिमुक्केहि य' सुकाये हुए हों, भुवननुं इन सारी रीते प्राप्त छे 'जाओ णं बहूणं णयरगोरूवाणं सणाहाण य जाव वसभाण य ' ने नगरमा रहेनारी भने सनाथ અને અનાથ ગાય माहिथी सहने सांढ पर्यन्तना लनवरोना' ऊहेही य ' स्तनना उपरना भाग ' थणेहिय સ્તન बसणेहि य ' अंश ' छिप्पाहि य 9 1 6 9 6 પુછડાએ ककुएहि य " उमुट्ठो (सांढना अंधना पाछणना लागनुं मांसपिंड) કાન अक्खीहि य आज 'णासाहि य 6 " ' वहेहि य' २४६ ' कण्णेहि य' નાક " जिभाहिय , જીભ ओहिय ' हो भने ' कंबलेहि य 9 સાના – ગળાની નીચે લટકતી थाभडी, मे गधा अभी-अभीने सावेसा होय, मने श्री' सेाल्लेहि य द्वारा अग्निमां पहावेला होय ' तलिएहि य ” ઘી અથવા તેલમાં તળેલા હાય, 4 " સાંણુસી S भज्जिएहि य' लुंनेसा होय, 6 परिहिय ૐ સુકવેલા હાય, અને શ્રી વિપાક સૂત્ર
SR No.006339
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages809
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vipakshrut
File Size44 MB
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