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________________ विपाकचन्द्रिका टीका, श्रु. १, अ० २, उज्ज्ञितकवर्णनम् । २१३ पुष्पमालायुक्तमित्यर्थः । 'चुण्णगुंडियगाय' चूर्णगुण्डितगात्रम्-चूर्णन गैरिकेण गुण्डितंलिप्तं गात्रं-शरीरं यस्य स तथा तम्, गैरिकरागरक्तदेहमित्यर्थः, 'चुण्णयं' चूर्णकं-संत्रस्तम् ‘वज्झपाणप्पियं' वध्यप्राणप्रियं-वध्याः -वधदण्डयोग्याः प्राणा: उच्छ्वासादयः प्रिया यस्य स तथा तम्, प्राणदण्डं प्राप्तुमर्हमित्यर्थः । 'तिलं तिलं चेध छिज्जमाणं' निलं तिलं चैव छेद्यमानम्-तिलशस्तिलशश्छेद्यमानमित्यर्थः, ' काकणिमंसखाविज ' कागणिमांसखायं 'कागणि' लघुतराणि मांसानि-मांसखंडानि-काकादिमिः खाद्यानि यस्य स तथा तम्, 'णवीखक्खरसएहिं हम्ममाणं' नव्यखर्खरशतैर्हन्यमानम्-खवरः अश्वत्रासनार्थचर्ममयतोत्रविशेषः, 'चाबूक' इति भाषाप्रसिद्धः, स्फुटितवंशो वा। शतसंख्यकाश्च ते नव्याः खखेरास्तैहन्यमानं = ताडयमानम, 'अणेगणरणारिसंपरिखुडं' अनेकनरनारीसंपरितृतं, 'चच्चरे चच्चरे' चत्वरे चत्वरे-अनेकमार्गसंमिलिते स्थाने २ 'खंडपडहएणं' खण्ड पटहेन-खण्डः = खण्डितः स्फुटितो यः पटहः गुंडियगाय' शरीर भी जिसका गैरिक-गेरु-के चूर्ण से लिप्त हो रहा था । 'चुण्णयं' जो अत्यंत संत्रस्त था। 'वज्झपाणप्पियं' जिसके उच्छ्वास आदि प्यारे प्राण, वधदंड के योग्य हो रहे थे-जो प्राणदंड प्राप्ति के योग्य हो रहा था । 'तिलंतिलं चेव छिन्नमाणं' जिसका शरीर तिल-तिल के बराबर काटा जा रहा था, 'काकणिमंसखाविज' जिसका मांस छोटे२ टुकड़े कर, कौवा आदि पक्षियों के खिलाने के लायक हो रहा था। 'णवोखक्खरसएहिं हम्ममाणं' सैकडों नवीन चर्मनिर्मित कोडों से जो पीटा जा रहा था। 'अणेगणरणारिसंपरिवुडं' जिसे देखने के लिये अनेक नर और नारियों का समूह एकट्ठा हुआ था, और इसीलिये जो इन सब से घिरा हुआ था। 'चञ्चरे २ खंडपडहएणं सास होरेपी सास ४३५ ना सोनी भा॥ ती. 'चुण्णगुंडियगायं' शरी२ ५५ नु ३ना यूथी लिप्त थ रहुं तु, 'चुण्णयं' भने ले गई। वासी गयल डतो. 'वज्झपाणप्पियंन श्वासोच्छ्वास माहि वडामा प्राय १५ ने साय२४ घi कुतi- प्राणुह पाभवा योग्य पनी रहो तो. 'तिलं तिलं चेव छिज्जमाणं'ना शरीरना तa-da241 नाना-नाना ४४७॥ ४२वामा माता तi. 'काकणिमसखाविज्ज' मांस नाना-नाना टु४ ४ीने 11 माह पक्षियाने भरावा साय: २६ रह्यं तु णवीखक्खरसएहिं हम्ममाणं' से नवीन ચામડાના તૈયાર કરેલા કેયડા વડે કરીને જેને માર મારવામાં આવતા હતા 'अणेगणरणारिसंपरिवुडं । नेनेवा माटे मन न२ नारीमानी समुदाय 438 थयो हतो; भने त भाटेत सौथा धेशोतो. 'चच्चरे२ खंडपडहणं उग्धासि શ્રી વિપાક સૂત્ર
SR No.006339
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages809
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vipakshrut
File Size44 MB
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