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विपाकश्रुते संप्रयोगवहुल:-सातिसंप्रयोगः लोकयन्वनाथै बहुमूल्यवस्तुनि हीनमूल्यवस्तुसंमेलनं, स बहुलो यस्य स तथा, दुष्परिचयः दुस्सङ्ककारका, दुश्चरितः दुष्टचरित्रवान, दुरनुनयः अविनीतः-केनापि वशीकर्तुमशक्यः, दुःशील:-दुष्ट-दोषयुक्तं शीलं स्वभावो यस्य स तथा, दुव्रतः-दुष्ट-मांसभक्षणादिकं व्रतम्-आचरणं यस्य स तथा, 'दुप्पडियाणंदे' दुष्पत्यानन्दः दुष्कृत्यकरणेष्वेव प्रसन्नमनाः, 'से णं एक्काई णामं रहकूडे' स खल्लु एकादिर्नाम राष्ट्रकूटः, 'विजयवद्धमाणस्स खेडस्स पंचण्हं गामसयाणं' विजयवर्धमानस्य खेटस्य पञ्चानां ग्रामशतानाम् 'आहेवच्चं' आधिपत्यं, 'पोरेवच्चं' पौरोवयं-पुरोवर्तित्वम्-अग्रेसरत्वम् , 'साइसंपओगबहुले' सातिसंप्रयोगबहुल-अच्छी वस्तु में बुरी वस्तु को मिलाकर अच्छी वस्तु के भाव से बेच देता था। 'दुप्परिचए' दुष्परिचय-उसके दुष्टों की ही संगति थी, 'दुचरिए' दुश्चरित-बडा दुश्चरित्र था, और 'दुरणुगए' दुरनुनय-किसीका भी कहना नहीं मानने वाला था, 'दुस्सीले ' दुश्शील-इसका स्वभाव भी दुष्ट था, 'दुबए ' दुव्रत-मांसभक्षणादिक करना इसका दैनिक आचार था। 'दुप्पडियाणंदे' दुष्पत्यानन्द-यह दुष्कृत्य करने में ही सदा आनन्द मानता था। ‘से णं एक्काई णामं रहकूडे' यह एकादि नामका मांडलिक नरपति 'विजयवद्धमाणस्स गयरस्स पंचण्डं गामसयाणं आहेवचं' इस वर्द्धमान खेट के पांचसौ गावों का स्वयं अधिपतित्व करता था
और अपने नियोगिजनों से भी उनका अधिपतित्व कराता था। 'पोरेवचं' स्वयं उनका मुखिया बना हुआ था, और अपने नियोगिछुपावना। तो, 'साइसंपओगबहुले' सारी १२तुम नहरी पतु भगवान ते सारी वस्तुना माया या हेतो तो. 'दुप्परिचए' तेने दुष्ट माणुसोनी सोमत
ती, 'दुचरिए' महु सूड यात्रि-वाणाहतो, अन दुरणुणए' धनु डेवू नहि भानवावाणतो , 'दुस्सीले' gela sतो-तेना नाव ५५] दुट इतो, 'दुव्धए'
ततो-भांसमक्ष ४२ तेतो तेन भेयानो माया२ तो, भने 'दुप्पडियाणंदे' दुष्प्रत्यान तो-दुष्ट४ ४२पामा भेशा मानन्द मानतो तो. से णं एक्काई णाम रहकूडे' ते हि नाभन भांडla४ २१, विजयवद्धमाणस्स गयरस्स पंचण्डं गामसयाणं आहेवच्चं - - 4 भान उन पांयसेजाभानु पोते अधिपतिपा કરતું હતું, અને પિતાના નિયગી જને પાસે તે ગામનું અધિપતિત્વ કરાવતે હતો. 'पोरेवच्चं 'पाते तेमानी परी मनीन हेता हतो, मन तेणे पोताना नियोजनान (आशामा २ ना२ विश्वामु भासाने ) पY तना भुज्य मनाच्या हा.' सामि'
શ્રી વિપાક સૂત્ર