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विपाकचन्द्रिका टीका, श्रु० १, अ० १, एकादिराष्ट्रकूटवर्णनम्
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प्ररज्यते यः स तथा अधर्मशीलसमुदाचारः = आचारविचारशून्यः, अधर्मेणन वृत्ति = जीविकां कल्पयन् = कुर्वाणो विहरति । पुनः - जहि = मारय, छिन्धि - छेदय, भिन्धि-भेदय - इति भाषणशीलः, विकर्त्तकः = नासिकादिकर्तनशीलः, अतएवलोहितपाणिः= रुधिरखरण्टितहस्तः, चण्डः = कोपनः, रुद्रः =भयजनकः, क्षुद्रः = क्षुद्रबुद्धिकः, असमीक्षितकारी अविमृश्यकारी, अत एव साहसिक: = दुस्साहसवान, उत्कञ्चनः = उत्कोचग्राही, वञ्चनः = प्रतारकः, मायी मायाकरणशीलः, निकृतिः= निकृतिमान - गूढमायी, कूटमायी = गूढमायाच्छादनार्थं पुनर्मायाकारकः, सातिऔर यह ' अहम्ण व वित्तिं कप्पेमाणे विहरइ' अधर्म से ही अपनी आजीविका करता था । फिर यह 'हण, छिंद, सिंद'-मारो, काटो, भेदन करो' - इत्यादि वाक्य बोलता रहता था । ' विकत्तए' विकर्त्तकप्राणियों के नाक आदि अवयवों को काटनेवाला था, इसलिए 'लोहियपाणी' लोहितपाणि- इसके हाथ खून से भरे रहते थे । यह 'चंडे' चंड - बडा क्रोधी और 'रुद्दे' रुद्र - भयानक था, 'खुद्दे' बुद्धि इसकी तुच्छ थी, यह 'असमिक्खियकारी' असमीक्षितकारी- विना विचारे कार्य कर बैठता था, अतः यह ' साहस्सिए' साहसिक - बडा ही दुस्साहस वाला था, 'उकंचण - वंचण - माई' यह 'उत्कंचन' - घूँस - रिश्वत - खानेवाला पूरा था, 'वञ्चन' दूसरे को ठगने में बडा चतुर था, 'मायी' कपटशील था, 'नियडी' निकृतिवाला - गूढकपटी और 'कूडमाई' कूटमायी - किये हुए एक कपट को दूसरे कपट से छिपा लेता था, * 'हण' यहाँ से लेकर 'दुप्पडियाणंदे' तक के विशेषण' दशाश्रुतस्कन्ध' में है । स्यान्यार मने वियारोथी हमेशां रहित हतो, अने ते ' अहम्मेणं चेव वित्तिं कप्पेमाणे हिरड़ ' धर्मश्री भानुवि उरतो तो इरी ते 'हण, छिंद, भिंद' भारी, डाटो, लेद्दन ४श-छत्याहि वाय मोसतो रहेता हतो. 'विकत्तए' वित्त-प्राणीमोना नाउ महि अवयवाने अथवावाणी डतो, तेथी उरी 'लोहियपाणी ' - तेना हाथ बोडीथी भरडान्मेसा रहेता ते ' चंडे ' - महान अघी भने ' रुद्दे ' - लयान हतो, ' खुद्दे ' - तुग्छ बुद्धिवान हतो. तेभन 'असमिक्खियकारी - सभीक्षितारी बिना वियाई अर्थ पुरी मेसतो हतो, तेथी ते 'साहस्सिए' - साहसि - लारे साहस ४२नार हतो, 'उक्कंचण-वंचण - माई ' તે ઉત્કંચન-લાંચરૂશ્ર્વત ખાવાવાળા પૂરા હતા, वथन- जीनने उगवामां महुनं यतुर हतो, भायी — मायामां मां शण हतो. नियडी ' - गुढपटी हतो. 'कूडमाई ' - रेखा कोड उपटने पीन કપટ વડે * 'हण' ही बने 'दुप्पडियाणंदे' गाडी सुधीना विशेष 'दशाश्रुतस्कंध' भां छे.
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શ્રી વિપાક સૂત્ર