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विपाकश्रुते
अहम्मप्पलोई, अहम्मजीवी, अहम्मप्पलज्जणे, अहम्मसीलसमुदायारे, अहम्मेणं चैत्र वित्तिं कप्पेमाणे विहरइ, 'हण, छिंद, भिंद, विकत्तए, लोहियपाणी, चंडे, रुद्दे, खुद्दे, असमिक्खियकारी, साहम्सिए, उक्कंचण-वंचण-माई, नियडी, कूडमाई साइपओगबहुले, दुष्परिचए, दुच्चरिए, दुरणणए, दुस्सीले दुब्बए, इति । तत्र - अधर्मानुगतः - अधर्म = श्रुतचारित्राभावमनुगतः, अधर्म सेवी - अधर्मे सेवितुं शीलं यस्य स तथा । तत्र हेतुं प्रदर्शयन् विशेषणान्याह - अधर्मेष्टः- अधर्म वेष्टो यस्य स तथा अत एव - अधर्माख्यायी = अधर्मोपदेशकः, अधर्मानुरागी= अधर्मानुरागवान्, अधर्मप्रलोकी= अधर्ममुपादेयतया प्रलोकयति मेक्षते यः सोऽधर्मप्रलोकी । अधर्मजीवी = अधर्मेणैव जीवनशीलः, अधर्मपरञ्जनः = अधर्मे । 'ण' इत्यारभ्य 'दुप्पडियाणंदे' इत्यन्तानि विशेषणानि 'दशाश्रुतस्कन्धे' वर्तन्ते । अहम्मसेवी, अहम्मिट्ठे' इत्यादि पदों का यहां पर ग्रहण हुआ है, इनका अर्थ इस प्रकार है - यह ' अहम्माणुगए ' अधर्मानुगत था - श्रुतचारित्ररूप धर्म की पालना से रिक्त था, यह 'अहम्मसेवी' अधर्मसेवीअधर्म का ही उपासक था, इसमें कारण यह था कि यह 'अहम्मिट्ठे' अधर्मेष्ट था - अधर्म ही इसे अभीष्ट था । यह 'अहम्मक्रखाई' अधर्माख्यायी- सदा अधर्म की ही प्ररूपणा करता था । ' अहम्माणुराई ' अधर्मानुरागी - अधर्म में ही यह सदा अनुरागी था, 'अहम्मप्पलोई' अधर्मप्रलोकी - यह इसलिये था कि यह अधर्म को ही उपादेयरूप से मानता था, 'अहम्मजीवी' अधर्मजीवी - अधर्म ही इसका जीवन था, अतः 'अहम्मपलज्जणे ' अधर्मपरञ्जन - अधर्म में ही मस्त रहता था, यह ' अहम्मसीलसमुदायारे' अधर्मशील समुदाचार - सुन्दर आचार और विचारों से सदा रहित था,
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अहम्मिट्ठे ' इत्यादि पहनुं मा स्थजे ग्रहण थयुं छे, तेनो अर्थ या अमाये छेते , 'अम्मा गए ' अधर्मानुगत — अधर्म भार्गे शासनार श्रुतयारित्र३य धर्म पासनथी दूर हतो; ते ' अहम्मसेवी ' अधर्मसेवी - अधर्मनुं सेवन डरनार, मने अधर्मना उपासक डतो, तेभां शरण मे तु मे 'अहम्मिट्ठे ' अधमेष्ट हतो, मेरो તેને અધજ વહાલા હતા. તે '' अहम्मक्खाई' धर्माध्यायी अधर्मी होवाथी हमेशां अधर्मनीन प्र३याणा उरतो तो, 'अहम्माणुराई ' अधर्मानुरागी - अधर्मभांन ते हमेशा प्रीतिवाणी हतो, ' अहम्मप्पलोई' संधर्भ असोडी ते अधर्मनेक उपाय भानतो हतो, 'अहम्मजीवी' अधर्मवी-अधर्म योन तेनुं भवन हेतु, तेथी ' अहम्मप्पलज्जणे' अधर्मप्ररंभन-संधर्भमा असन्न रहेनार-अधर्म भी भस्त रहना हतो ते 'अइम्म सीलसमुदायारे' धर्मशीलसहायार-मेटसे
सुन्दर
શ્રી વિપાક સૂત્ર