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प्रश्रव्याकरणसूत्रे टीका--'पंचमं' पञ्चमी विनयभावनामाह-' साहम्मिएसु' साधर्मि केषु पर्यायज्येष्ठं 'विणओ' विनयः 'पउंजियव्वो' प्रयोक्तव्यः करणीयः । तथा' उवगारणपारणासु' उपकारणपारणयो तत्र-उपकारणं स्वपरयोरुपकारकरणं, तत्र-स्वस्य संयमपालनेन, परस्य ग्लानाद्यवस्थायां वैयावृत्त्यादि करणेन, पारणातपसः पारणा श्रुतस्य पारगमनं वा पारणा, तयोःविनयः प्रयोक्तव्या-द्वयोरपि मृदुस्वाभावतया स्थातव्यमित्यर्थः, तथा-' वायणपरियट्टणासु' वाचनापरिवर्तनयोः वाचना सूत्रग्रहणम् , परिवर्तना-तस्यैवगुणनम् , तयोः विनयः वन्दनादिल____ अब सूत्रकार पांचवीं भावना को कहते हैं--'पंचमं साहम्मिएसु' इत्यादि। ___टीकार्थ-(पंचमं ) इस व्रत की पांचवीं भावना विनय है-जिसका स्वरूप इस प्रकार से है-(साहम्मिएसु विणो पउंजियव्यो) अपने समान धर्मवालों में जो दीक्षा पर्याय की अपेक्षा ज्येष्ठ हैं उनमें विनय वृत्ति रखनी चाहिये। तथा (उवगारणपारणासु विणओ पजियव्वो) स्व और पर के उपकार करने में और पारणा करने में विनय रखना चाहिये, संयम की आराधना करना यह निज का उपकार करना है
और ग्लान आदि अवस्था में अन्य साधु का वैयावत्य आदि करना यह पर का उपकार करना है, तपस्या का पारणा करना अथवा श्रुत के पार पहूँचना यह पारणा है इन दोनों स्थितियों में मृदु स्वभाव से रहना यही उपकारण पारणा का विनय करना है। इसी तरह (वायणपरियदृणासु) सूत्र की वाचना में और उसके परिवर्तन करने में-स्वाध्याय वे सूत्र४२ पायभी भावना मतावे छे-" पंचमं साहम्मिएसु" त्याहि
At-" पंचम” प्रतनी पायभी भावना विनय छ, रेनुं २१३५ मा प्रमाणे छ.-" साहम्मिएसु विणओ पजियव्वो" पोताना साधमा सामान દીક્ષા પર્યાયની અપેક્ષા એ મેટા હોય તેમના પર વિનયવૃત્તિ રાખવી જોઈએ. तथा “ उवगारणपारणासु विणओ उउंप जियव्वो" स्व भने ५२ने। ५४14 કરવામાં અને પારણાં કરવામાં વિનય રાખવો જોઈએ. સંયમની આરાધના કરવી તે પિતાના ઉપર ઉપકાર કર્યો ગણાય છે અને શ્વાન આદિ અવસ્થામાં અન્ય સાધુઓનું વૈયાવૃત્ય-વૈયાવંચ-કરવી તે પરના ઉપરનો ઉપકાર છે. તપનું પારણું કરવું અથવા કૃતને પાર પહોંચવું તે પણ પારણું છે. એ બન્ને સ્થિતિમાં મૃદુ સ્વભાવથી રહેવું તે જ પારણાને વિનય કરવાની રીત छ. मे ४ रीते “ वायणपरियणासु" सूत्रनी वायनामा भने तेनुं परिवतन ४२वामां-स्वाध्याय ४२वामा साधुये “विणओ पजियव्वो" al
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર