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सुदर्शिनी टीका अ. ३ सू०६ 'विविक्तवसति' नामक प्रथमभावनानिरूपणम् ७:४५ 'लिंपणं' लेपनम् = मृत्तिकामिश्रित गोमयादिना रन्ध्रादिपूरणेन सकुल्लेपनम्, 'अणुलिंपणं' अनुलेपनम् -शोभार्थ पुनः पुनर्लेपनम् ज्वलनं = शीतापनोदनाय वह्नेः प्रज्वलीकरणम्, भाण्डचालनम् = गृहस्थितभाण्डानामपरत्र स्थापनम् उपलक्षणमेतदन्यवस्तूनामपि एतेषां समाहारद्वन्द्वः, एतद्रूप :- ' असंजमो ' असंजम: - जीवविराधनारूपः साधुनिमित्तं ' व ' वर्तते ' से तारिसे ' स तादृशः ' सुत्तपरिकुट्टे' सूत्रपरिष्टः- आगमनिषिद्धः, 'हु' निश्चयेन ' उवस्सए ' उपाश्रयः 'संजयाणं संयतानाम् ' अट्टा ' अर्थाय ' वज्जेयव्वो' वर्जितव्यः । संयमि - भिरेतादृशे जीवविराधनायुक्ते उपाश्रये न कदापि वस्तव्यमिति भावः । प्रथमभाचनामुपसंहरन्नाह - ' एवं ' एवम् उक्तरूपेण ' विवित्तवासवसहिस मिजोगेणं विविक्तवासवसति समितियोगेन - विवक्ता = स्त्रीपशुपण्डकरहिता जनरहिता वा या जिसकी भीते पोतकर उज्ज्वल कर दी गई हों, जिसमें छेद वगैरह गोबर मिश्रित मिट्टी से पूर दिये गये हों, तथा जो बार २ सुन्दर दिखाने के निमित्त गोमयादि मिश्रित मृत्तिका से लीपा गया हो, जहां शीत को दूर करने के लिये अग्नि जल रही हो और जहां से रक्खे हुए गृहस्थजनों के बर्तन उठा २ कर दूसरी जगह रखे जा रहे हों इस प्रकार का (असंजमो वट्टइ) जीवविराधना रूप असंयम जहां साधु के निमित्त हो रहा हो ( से तारसे) इस प्रकार का जो ( सुत्त परिकुट्टे ) आगम से निषिद्ध है ( उवस्सए) वह उपाश्रय ( संजयाणं अट्ठा) साधुओं के लिये ( वज्जेयव्वो) वर्जनीय है, अर्थात् इस प्रकार के उपाश्रय में साधु को नहीं वसना चाहिये । अव सूत्रकार प्रथम भावना का उपसंहार करते हुए कहते हैं - ( एवं ) उक्तरूप से इस ( विवित्तवासवसहिसमिइ - जोगेण) विविक्तवासवसतिसमिति के योग से - स्त्री पशु पंडक से
ઉજ્જવળ બનાવવામાં આવી હાય, જેમાંનાં છિદ્રો આદિ છાણમિશ્રિત માટીથી પૂરી દીધાં હાય, તથા જે સુંદર દેખાય તે માટે વારંવાર છાણ આદિ મિશ્રિત માટીથી લીંપવામાં આવેલ હાય, જ્યાં શીત દૂર કરવાને માટે અગ્નિ મળતા હાય, અને જ્યાંથી ગૃહસ્થાનાં વાસણ ઉપાડી ઉપાડીને બીજી જગ્યાએ મૂકવામાં भावतां होय, या प्रहारनो " अजमोदृ" જીવ વિરાધનારૂપ અસયમ नयां साधुने निमित्ते यह रह्यो होय, " से तारिसे " आ प्राश्नु ? " सुत्त. परिकुट्टे ” भागमद्वारा निषिद्ध छे, " संजयाणं अट्ठा ” તે ઉપાશ્રય साधुमाने माटे " वज्जेयब्वो ” वनीय छे भेटले ते अरना उपाश्रयमां સાધુએ રહેવું જોઇએ નહીં. હવે સૂત્રકાર પહેલી ભાષનાના ઉપસંહાર કરતા उहे छे - " एवं " ५२ ह्या प्रमाणे मा (( विवित्तवासवसहिसमिइजोगेण
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उवस्सए
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શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
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