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________________ सुदर्शिनी टीका अ० २ सू० ८ पञ्चमीभावनास्वरूपनिरूपणम् ७०१ हासं, अण्णाण्णजणियं च होज्ज हासं, अण्णोण्णगमणं च होज्ज मम्मं, अण्णोण्णगमणं च होज्ज कम्मं कंदप्पभिओगगमणं च होज्ज हासं, आसुरियं किब्बिसत्तणं च जणेज्ज हासं, तम्हा हासं न सेवियव्वं । एवं मोणेण य भाविओ भवइ अंतरप्पा संजयकरचरणनयणवयणो सूरो सच्चज्जवसंपन्नो ॥ सू॥ ८ ॥ टीका-'पंचमं ' पञ्चमी भावनामाह-' हासं ' हास्यं नोकषायमोहोदयात्सनिमित्तमनिमित्तं वा विवृतवर्णपुरस्सरं मुखव्यादानं हास्यम् , न 'सेवियब्वं' सेवितव्यम् । किमर्थ न सेवितव्यम् ? इत्याह-'हासइत्ता' हासयितारः-परिहासकारिणः 'अलियाई' अलिकानि-सद्भूतार्थगोपनरूपाणि 'असंतगाई' असत्कानि= अब सूत्रकार पंचमी मौन भावना को कहते हैं-'पंचम , इत्यादि । टीकार्थ-(पंचमं ) पांचवी मौन भावना इस प्रकार है। (हासं न सेवियव्वं ) इस भावना में हास्य के सेवन का परित्याग कर दिया जाता है । जब जीव को हास्यनो कषाक मोह का उदय होता है तब वह हास्य का निमित्त मिले अथवा न भी मिले तो भी वह हीही करता हुआ हँसने लग जाता है । हँसते समय उसका मुख खुल जाता हैं दांत स्पष्ट दिखलाइ देने लगते है। संयमी जन को इस हास्य का सेवन नहीं करना चाहिये । क्यों कि (हासइत्ता) जो परिहास करने वाले व्यक्ति होते हैं वे ( अलिअई असंतगाई जंपंति ) सद्भूत वे सूत्र४।२ पायी भौनभावना मतावे छ—“ पंचमं" त्याह li -" पंचमं ” पायभी भीनमावना - प्रमाणे छ-" हास न सेवियब्वं " 0 मानामा डायना परित्या ४२राय छे. न्यारे अपने — हास्यनोकषाय' माडन थाय छे त्यारे ते हास्यतुं निमित्त भणे न भने છતાં પણ તે “હી-હી” કરતે હસવા મંડી જાય છે. હસતી વખતે તેનું મુખ ઉઘડી જાય છે અને દાંત સ્પષ્ટ રીતે દેખાય છે. સંયમી જને આ હાસ્યનું सेवन ४२ मे नही २१ , “ हासइत्ता " २ परिहास ४२१॥२ व्यति डाय छे ते “ अलिआई असंतगाई जति ” यथाथ मन छुपानार भने શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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