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________________ सुदर्शिनी टीका अ० २ सू० २ सत्यस्वरूपनिरूपणम् दशविधं स्थानाङ्गस्य दशमस्थाने प्रोक्तम् । तथाहि "जणवय १ सम्मय २ ठवणा ३, नाम ४ रूवे ५ पडुच्च सच्चे ६ य। ववहार ७ भाव ८ जोगे ९ दसमे ओवम्मसच्चे य १० ॥ छाया-जनपद १ संमत २ स्थापना ३ नाम ४ रूपं ५ प्रतीत्यसत्यं ६च । व्यवहार ७ भाव ८ योगः ९ दशममौपम्यसत्यं च १० ॥ इति । तत्र-जनपदसत्यम्-यथा बङ्गदेशे गौरिति 'गाभी' शब्देन व्यपदिश्यते ॥ १ ॥ संमतसत्यम्-संमतं च तत्सत्यं च-संमतसत्यम् = लोकसंमत्या प्रसिद्धं, तथाहि-कुमुदकुवलयोत्पलतामरसानां समानेऽपि पङ्कसंभवे सर्वसम्मतमरविन्दमेव पङ्कजम् ॥ २ ॥ स्थापनासत्यम्- यथा-एक संख्यायाः पुरतो विन्दुहृयस्थापनेन है। यह (दसविहं ) दश प्रकार होता है, इसके ये दश प्रकार स्थानांग के दशम स्थान में इस प्रकार कहे हैं जनपदसत्य १, संमतसत्य २, स्थापनासत्य ३, नामसत्य ४, रूपसत्य ५, प्रतीत्यसत्य ६, व्यवहारसत्य ७, भावसत्य ८, योगसत्य ९, और उपमासत्य १०॥ तत्तद्देशवासी मनुष्यों के व्यवहार में जो शब्द रूट हो रहा है वह जनपदसत्य है जैसे वंगाल में गाय को “गाभी" कहते हैं। अतः "गामी'' यह शब्द जनपदसत्य है १। बहुत मनुष्यों की समति से जो शब्द साधारण में रूढ़ हो उसे सम्मतिसत्य कहते हैं, जैसे कुमुद, कुवलय, उत्पल तथा तामरस इनमें पंक संभावता की समानता होने पर भी सर्वसम्मति से अरविन्द को ही पंकज मानना, अर्थात् कुवलय, उत्पल आदि सब ही पंकज हैं फिर भी पंकज शब्द अरबिन्द में ही रूढ़ हुआ है। इसलिये अरविन्द को ही पंकज माननो यह सम्मत. પ્રકારનું છે. તેના તે દશ પ્રકાર સ્થાનાંગનાં દશમાં સ્થાનમાં આ પ્રમાણે કહેલ છે. (१) ५४ सत्य (२) संमत सत्य (3) स्थापना सत्य (४) नामसत्य (५) ३५सत्य (६) प्रतात्य सत्य (७) व्यवहार सत्य (८) मापसत्य (6) રોગ સત્ય અને (૧૦) ઉપમા સત્ય, (૧) દેશવાસી મનુષ્યના વ્યવહારમાં જે શબ્દ રૂઢ થઈ ગયું હોય તે દેશવાસી માટે જનપદ સત્ય છે. જેમકે ગાયને બ ગાળામાં “ગાભી ” કહે छ तेथी “ गाभी " श६ ५६ सत्य छे. (२) पधारे माणुसोनी सभतिथी જે શબ્દ સાધારણ રીતે રૂઢ થાય તે સંમતિ સત્ય કહેવાય છે. જેમકે કુમુદ કુવલય, ઉત્પલ, તથા તામરસ તેઓમાં પંક સંભવતાની સમાનતા હોવા છતાં પણ અરવિંદને જ પંકજ માનવું, એટલે કે કુવલય, ઉપલ, આદિ બધાં પંકજ છે છતાં પણ પંકજ શબ્દ અરવિંદમાં જ રૂઢ થયેલ છે. તે કારણે અરવિંદને જ શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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