________________
सुदर्शिनी टीका अ0 ४ सू०७ बलदेववासुदेवस्वरूपनिरूपणम् ४३१ कृष्णस्ते हतवानित्यर्थः 'कंसमउडमोडगा' कंसमुकुटमोटकाः कंसमुकुटसञ्चूरकाः, कृष्णो हि चाणवधानन्तरं कुपितं कंसं युयुत्सं मुकुटदेशं गृहीत्वा सिंहासनादाकृष्य भुविनिपात्य जघान । तथा 'जरासंधमाणमहणा' जरासन्धमानमथनाः जरासन्धगविनाशकाः, जरासन्धघातका इत्यर्थः, कंसवधकुपितं राजगृहनगरपति जरासन्धाभिधानं युद्धायोद्यत हतवान् । पुनः कीदृशाः ? इत्याह—'तेहि य अविरलसमसंहिय चंदमंडलसमप्पभेहिं सूरमरीइ कवयं विगिम्मुयंतेहिं सप्पडि दंडेहिं आयवत्तेहि धरिज्जतेहिं विरायंता ' तत्र 'तेहिं ' तैश्वातिशयवद्भिश्छत्रैविराजमानाः, इति सम्बन्धः कीदृशै'छत्रैः ? इत्याह-अविरलसमसंहितचन्द्रमण्डलसमप्रभैः अविरलानि =धनानि-घनशलाकाववात् , समानि = तुल्यानि स्थूलत्वेन दीर्घत्वेन च शलाकास्त्रियों के रिपु थे-क्यों कि बाल्यावस्था में कृष्ण ने इन दोनों को मारा था, तथा ( कंसमउडमोडगा ) कृष्ण ने कंस के मुकुट को चूर २ कर दिया था-अर्थात्-चाणूर मल्ल के वध करने के अनन्तर जब कंस युद्ध करनेकी इच्छावाला हो गया तो उसे मुकुट को पकड़ कर कृष्णने सिंहासन से नीचे खेंच लिया और जमीन पर पटक कर मार डाला, इसी तरह ( जरासंघमाणमहणाा ) कृष्णने-राजगृह नगर के अधिपति जरासंध नाम के राजाओं को मारा हैं, कंस के वध हो जाने के बाद जब जरासंध कुपित होकर युद्ध करने के लिये उद्यत हो गया था तो कृष्ण ने उसे बातकी-बात में संग्राम भूमि मे नष्ट कर दिया था, तथा ( तेहिय अविरल समसंहियचंद मंडलसमप्पभेहिं सूरमरीइकवयं विणिमुयंते. हिं सप्पडिदंडेहिं आयवत्तहिं धरिज्जतेहिं विरायंता)जो अतिशय शाली छन्त्रों से विराजमान होते हैं अर्थात्-जिन छत्रों से बलदेव और वासुदेव सुशोभित होते हैं उन छात्रों की शलाईयां बहुत अधिक घनीभूत होती પૂતના નામની બે સ્ત્રીઓના દુશ્મન હતા અને તે કારણે બાળપણમાં તેમણે से मन्नन भारी ती, तथा “ कंसमउडमोडगा” को सना भुगटन। यूरे ચૂરા કરી નાખ્યા હતા. ચાણુર મલ્લને કૃષ્ણ વધ કર્યા પછી જ્યારે કંસે કૃષ્ણ સાથે લડવાની ઈચ્છા બતાવી ત્યારે કૃષ્ણ તેને મુગટ પકડીને તેને સિંહા સન ઉપરથી નીચે ખેંચીને જમીન ઉપર પછાડીને મારી નાખે, આ રીતે " जरासघमाणमहणा” ४०d राड नगरना रात सधन वध હતો. કંસને વધ થયા પછી જ્યારે જરાસંધ ક્રોધે ભરાઈને લડવાને તૈયાર थयो त्यारे को ४ घडीमा तनो २शुभेहानमा १५ यो डतो. तथा “ तेहि य अविरलसमसंदियचंदमंडलसमप्पभेहिं सूरमरीइ कवयं विणिमुयतेहिं दडेहिं आयवत्तेहिं धरिज्जतेहिं विरायंता" ते घसजिया वाणां छत्राथी शीलता
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર