SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 488
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४३० प्रश्नव्याकरणसूत्रे महाबलमौष्टिकचाणूरादिमल्लविध्वंसकाः कृष्णवधार्थ कंसेन प्रवर्तिते मल्लयुद्ध बलरामेण मौष्टिकाभिधाना मल्लो वासुदेवेन च चाणूराभिधानो मल्लो निहतः इति । 'रिद्ववसभघाइणो' रिष्टवृषभघातिनः = रिष्टाभिधानकंसबलीवर्दघातकाः, 'केसरिमुहविष्फाडगा' केसरिमुख विस्फाटकाः इदं विशेषणं त्रिपृष्टकाभिधप्रथम वासुदेवापेक्षया बोध्यम् । स हि नगरोपद्रवकारि घनकानननिवासि महासिंह मुखं विदारितवान् । ' दरियनागदप्पमहणा' दृप्तनागदप्मथनाः यमुना निवासि महाविषकालनागगर्वविनाशकाः, जमलज्जुणभंजणा ' यमलाऽर्जुनभञ्जकाः = यमलार्जुनवृक्षविनाशकाः तौ हि पितृवैरिणौ विद्याधरौ यमलार्जुननामको वृक्षरूपं विकुळ पथि स्थितौ चुर्णितवन्तः। 'महासउणिपूयणरिऊ' महाशकुनिपूतनारिपवः-महाशकुनिः पूतना च विद्याधरपत्न्यौ, तयोः रिपवः । वाल्यावस्थायां मारा, तथा वासुदेव कृष्ण ने चाणूर नामके मल्ल को मारा यही बात " बलवग गज्जंत०" इस पद द्वारा प्रदर्शित की गई है । तथा (रिट्टवसभघाइणो ) जो कंस के रिष्ट नाम के मायावी वलीवर्द के घातक थे तथा (केसरिमुहविप्फाडगा) केशरी सिंह के मुख को भी फाड़ देते थे, यह विशेषण त्रिपृष्ठ नारायण की अपेक्षा कहा गया जानना चाहिये, क्यों कि उन्हीं ने नगर में उपद्रव मचाने वाले जंगली सिंह के मुख को विदारित किया है। ( दरियनागदप्पमहणा ) तथा जिस नारायणने यमुना निवासी महाविषैले काली नामकसर्प का विनाश किया है-तथा ( जमलज्जुणभंजणा ) नारायण ने पिता के वैरी दो विद्याधरों को की जिनका नाम यमल और अर्जुन था और जो मार्ग में वृक्ष का रूप अपनी विक्रिया से बनाकर खड़े हो गये थे उनको मारा है (महासउणि पूयणरिज) तथा जो विद्याधर की महाशकुनि एवं पूतना नामक दो ४० या२ नामना मन भाये ये ४ पात “बलवगगज्जत" ५६ ॥२॥ माम मावी. छ. तथा " रिद्ववसभघाइणो " सना रिट नामना भायावी दीवना घात उत तथा “केसरीमुहविप्फाडगा" सिडना મુખને પણ ફાડી નાખતા હતા. તે વિશેષણ ત્રિપૃષ્ઠ નારાયણને અનુલક્ષીને વપરાયું છે, કારણ કે તેમણે નગરમાં ઉપદ્રવ મચાવનાર જંગલી સિંહના મુખને यारी नाभ्यु उतुं. “ दरियनागदप्पमहणा” तथा २ नारायणे यमुनामा २२ता भतिशय उरी जीनागने १० ४ छ, तथा “ जमलज्जुणभंजणा" नासથણે તેમના પિતા વમળ અને અર્જુન નામના બે દુશ્મન વિદ્યાધર, કે જે માર્ગમાં પિતાની વૈક્રિય શક્તિથી વૃક્ષના રૂપ લઈ ઉભા થઈ ગયા હતા तभने भार्या उता. “ महासउणिपूयणरिऊ "तथा २ विद्याधरनी भावनि भने શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy