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________________ सुदर्शिनी टीका अ० ४ सू०६ बलदेववासुदेवस्वरूपनिरूपणम् ४२३ वालधणधण्णसंचया । नानामणिकनकरत्नमौक्तिकप्रवालधनधान्यसञ्चयाः, तत्र नानाविधा मणयः चन्द्रकान्तादयः कनकानि-सुवर्णानि रत्नानि कर्केतनादीनि मौक्तिकानि-मुक्ताफलानि प्रवालानि= 'मूंगा' इति प्रसिद्धानि धनानि-गणिमादीनि, तत्र गणिमं-गणयित्वा यदीयते तद्वस्तु गणिममित्युच्यते नालिकेरपूगीफलादिकम् , एवं धरिमं-यत्तुलायां धृत्वा दीयते तत्, सुवर्णरजतादिकम्, मेयंकुडवेन-मानविशेषेण ' पायली' इति प्रसिद्धन परिमीय यदीयते तत्, शालीगोधूमादिकम् , परिच्छेद्यं परीक्ष्य यहीयते तत् , रत्नवस्त्रादिकम् , धान्यानि शालियवादीनि तेषां सञ्चयाः राशयो येषां ते तथा 'रिद्धसमिद्धकोसा' ऋद्धि समृद्धकोशाः= विविधसम्पत्तिपूर्णभाण्डागाराः ' हयगयरहसहस्ससामी' हयगजरथसहस्रस्वामिना स्पष्टम् । 'गामागरणगरखेडकब्बडमडंबदोणमुहपट्टणाऽऽसमसंबाह सहस्स थिमियनिघुयप्पमुइयजणविविह-सस्सनिष्फज्जमाणमेइणि सरसरियतलाणिकणग-रयण-मोत्तिय पवालधणधण्णसंचया ) चन्द्रकान्त आदि नाना प्रकारके मणियों की, सुवर्ण की, कर्केतनादि रत्नोंकी, मुक्ताफलों की, मुंगाओं की, तथा धन-गणिमादि, तथा गणिम-गिनकर दी जानेवाली नालिकेर पूगीफल आदि वस्तुओंकी, तथा धरिम-तुला से तौल कर दी जानेयोग्य सुवर्ण रजत आदि द्रव्योंकी, तथा मेय-कुडव 'पायली' नापके नामविशेष से नापकर दिये जानेयोग्य शालिगोधूम आदि अनाजोंकी, तथापरिच्छेद्यपरीक्षा करके दी जानेयोग्य रत्न वस्त्र आदि चीजों की तथा धान्य शालि यब आदि धान्यों की इनके यहां राशि रहा करती है । तथा-(रिद्धसमिद्ध कोसा) विविध संपत्तिसे इनका भाण्डागार (भंडार ) पूर्ण भरा रहता है । तथा ( हयगयरहसहस्ससामी ) हयों के घोड़ों के, हाथियों के एवं रथों के ये स्वामी होते हैं। (गामागरणगरखेडकब्बडमडंबदोणमुहपट्टणासम कणगरयणमोत्तिय पवालधणधण्णसंचया " यन्द्रन्त माह विविध भएमानी, सुवानी, तनाहि रत्नानी, साया मातीनी, भुयाना, तथा, ધન-ગણિમાદિને, (ગણિમ-ગણીને અપાતી નાળિયેર પૂગીફળ આદિ વરતુઓને) धरिमन (“ धरिम-त्रावाथी भीने माया योग्य सुवर्ण, याही माe द्रव्य) मेय-वनी ("पायली" (भा) माहिथी भरीने २॥५॥ योग्य ખા, ઘઉં આદિ અનાજ) પરિચ્છેદ–પરીક્ષા કરીને આપવા ગ્ય રત્નવસ્ત્ર આદિ ચીજોને, તથા ધાન્યને (ચેખા જવ આદિ અનાજને) તેમને त्या १२ मरेश डाय छ. तथा “रिद्धिसमिद्धकोसा " विविध संपत्तिथी तभनी मा२ सहा २५२ २९ छ. तथा " हयगयरहसहस्ससामी" घोडा, हाथी भने २थाना तेमा मधिपति डाय छ “गामागरणगरखेडकब्बडमडंब શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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