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________________ કર૨ प्रश्नव्याकरणसूत्रे प्रद्युम्न – प्रतिवसांवाऽनिरुद्धनिषधोल्मक-सारण-गज-मुमुखदुर्मुखादीनां 'जायवाणं' यादवानां = यदुवंशिनां 'अछुट्ठाण वि ' अर्द्धचतुर्थानामपि= सार्धतिसृणामपि 'कुमारकोडीणं ' कुमारकोटीनां 'हिययदइया' हृदयदयिता: हृदयप्रियाः 'देवीए रोहिणीए देवीए देवईए य आणंदहिययभावनंदणकरा' देव्या रोहिण्याः वलदेवमातुः देव्यादेवक्याः कृष्णमातुश्च आनन्दरूपो यो हृदयभावस्तस्य नन्दनकरा:वृद्धिकारकाः ‘सोलसरायवरसहस्साणुजायमग्गा' षोडशराजवरसहस्रानुयातमार्गाः = षोडशसहस्रसंख्यका राजवरा अनुमता भवन्ति मार्गे येषां ते तथा । तत्पदर्शितनीतिमार्गानुवर्तिन इत्यर्थः तदाज्ञाकारिण इति यावत् । सोलसदेवीसहस्सवरणयणहिययदइया । षोडशदेवीसहस्रवरनयनहृदयदयिताः षोडशसहस्रदेवीनां वरनयनानां चारु लोचनानां सुन्दरीणां हृदययिताः= हृदयवल्लभाः, विशेषणमिदं वासुदेवापेक्षया। ‘णाणामणिकणगरयणमोत्तियपनिषध, उल्मक, सारण, गज़, सुमुख, दुर्मुख आदि साढातीन ३॥ करोड़ यादवकुमारों के लिये ये हृदय से अधिक प्यारे होते हैं । (देवीए रोहिणीए देबीए देवईए य आणंदहिय भावनंदणकरा) देवी रोहणी के तथा देवी देवकी के आनंदरूप हृदयभाव की ये वृद्धि करनेवाले होते हैं, देवी रोहिणी ये बलदेव की माता तथा देवी देवकी ये कृष्णकी माता हैं। (सोलसरायवरसहस्साणुजायमग्गा) १६ सोल हजार राजा जिनके पीछे२ मार्ग में चला करते हैं, अर्थात् जिस प्रकार वे इन्हें नीतिमार्ग का प्रदर्शन करते हैं उसी नीतिमार्गका ये अनुसरण करते हैं, अथवा उनकी आज्ञानुसार चलते हैं। (सोलस देवीसहस्सवरणयणहिययदइया) १६ सोल हजार स्त्रियों के नयनों को और हृदयोंको ये अत्यंतप्रिय होते हैं, यह विशेषण वासुदेवकी अपेक्षा से कहा गया जानना चाहिये। (णाणामप्रतिवसांस, अनिरुद्ध, निषध, भु. सा२६१, ११, सुभुप, हुभु५ मा સાડા ત્રણ કરોડ યાદવ કુમારને તે પ્રાણથી પણ અધિક વહાલા હોય છે, "देवीए रोहिणीए देवीए देवईए य आणंदहियभावनंहणकरा" पी. डी તથા દેવી દેવકીના હદયના આનંદમાં તેઓ વૃદ્ધિ કરનારા હોય છે. દેવી शडि गवनी माता तथा हेवी हेवी गुनी भाता छ. " सोलसरायरसहस्साणुजायमगा" १६सोज १२ रानी तमने मनुसरे छ, सेट तमना દ્વારા જે નીતિમાર્ગ તેઓ બતાવે છે, એ જ નીતિમાર્ગનું તેઓ અનુસરણ १२ छ, अथवा तेभनी माज्ञा प्रमाणे ते अधा यासे छे. “सोलस देवीसहस्सवरणयणहिययदेइया " १६ सो ०१२ स्त्रीयानां नयने तथा यने तेस। सत्यत प्रिय डाय छे. विशेष वासुदेवने अनुक्षी पाये छ. “णाणामणि શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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