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________________ २८० प्रश्नव्याकरणसूत्रे 6 उरसा = वक्षःस्थलेन सह शिरोमुखाः- उर्ध्वमुखा बद्धाः कण्ठे ग्रीवायां तोणाः = तूणीराः तरकस ' इति 'तीरभाता' इति वा भाषाप्रतीता यैस्ते तथा एतादृशा नृपाः गच्छन्ति संग्रामे इत्याह 6 पासियवरफलगरइय पहकर सरभसवर चावकरकरंचियसुनिसियसरवरिसवडकरक मुयंतघणचंड वेगधारा निवाय मग्गे ' पाशितवरफलकरचितमकरसरभसखरचापकर कराश्चित सुनिशितशरवर्ष वृद्धकरकमुच्यमानघनचण्ड वेगधारानिपातमार्गे= तत्र पासिय इति स्पृष्टानि = हस्ते धृतानि वरफलकानि=परशस्त्रपहारप्रतिरोध कशस्त्राणि ढाल ' इतिप्रसिद्धानि यैस्ते, तथा रचितः = कृतो रिपुशस्त्र प्रतिघातार्थ ' पहकर ' इति प्रकरः = रचनाविशेषेण सैन्यसमूहो यैस्ते, तथा सरभसाः =स हर्पाः सवेगा वा खरचापकराः = निष्ठुरधनु , 6 " कंठतोणा ) इनके वक्ष्यस्थल पर तूणीर-तरकस -बांधा जाता है, इनमें उर्ध्वमुख करके वाणग्रीवा के पास भरे रहते हैं । इस प्रकार से पहिले सज्जित होकर कितनेक राजा संग्रामभूमि में युद्ध करने के लिये (अइवयंति ) उतरते हैं । इस प्रकार से यहां संबंध लगा लेना चाहिये। जिस युद्ध में राजा उतरते हैं वह युद्ध किस प्रकारका होता है ? सो कहते हैंजिस संग्रामभूमि में (पासियवरफलग) निष्ठुर धनुर्धारीजन अपने ऊपर से परके शस्त्रप्रहारों को रोकने के लिये ढालोंको हाथोंमें लिये होते हैं, (रइयपकर ) शत्रु के शस्त्रों का प्रतिघात करने के लिये वे अपनी २ सेना को एक विशेष प्रकार की रचना में स्थापित किये हुए रहते हैं तथा ( सरभस ) परस्पर में युद्ध करने का चाव जहां आपस में खूब चढ़ा बढ़ा होता है - हर्ष अथवा वेग से जो युक्त होते हैं ऐसे ( चावकर) धनुर्धारियों શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર 66 अइ “ उरसिरमुहबद्धकंठतोणा " तेमनां वक्षस्थण परतूर१- लाथा मांसा होय छे. તે ભાથામાં ખાણા ઉર્ધ્વમુખ રહે તેમ, ડોકની પાસે ભરેલાં રહે છે. આ રીતે પહેલાં સજ્જ થઈને કેટલાક રાજાએ યુદ્ધ કરવાને માટે રણમેદાનમાં बयंति " उतरी पडे छे, से अमरनो संबंध अहीं समल सेवानो छे. ने યુદ્ધમાં રાજા ઉતરે છે તે યુદ્ધ કેવું હાય છે ? તેના જવાખમાં કહે છે— ने रणुभेहानभां "पासियवर फलग' निर्द्वय धनुर्धारीयो दुश्मनोना शस्त्र प्रहाशने रोङवाने भाटे घोताना हाथमां दास रामे छे, तथा " रइयपहकर " शत्रुना शस्त्रोनो મુકાખલા કરવાને માટે તે પોતપાતાની સેનાને એક વિશિષ્ટ પ્રકારની વ્યૂહ રચनामां गोडवे छे, तथा " सरभस" अन्योन्य सडवानो शोज नयां भूम रहे छे. हुर्ष अथवा वेगथी ने युक्त होय छे मेवा "चावकर" धनुर्धारीयो द्वारा न्यां “कर चि
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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