SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 337
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुदर्शिनी टोका अ) ३ सू० ४ परधनलुब्धनृपस्वरूपनिरूपणम् २७९ संग्रामे 'अइवयंति' अतिपतन्ति-युद्धं कर्तु प्रवर्तन्ते । कथं भूताः ? इत्याह‘सण्णबद्धपडियर-उप्पाडियचिंधपट्टगहियाउहपहरणा' सन्नद्धबद्धपरिकरोत्पाटितचिन्हपटगृहीतायुधप्रहरणाः तत्र सन्नद्धाः युद्धसामग्रीभिः सज्जीभूतास्तथा, बद्धः परिकरः कवचो यैस्ते बद्धपरिकराः बद्धकवचाः तथोत्पाटितः दृढं बद्धो मस्तके चिन्हपटः रक्तपट्टादि स्वचिन्हविशेषो यैस्ते तथा,गृहीतानि परिधृतानि रिपुहननाथमायुधानि-बाणादीनि प्रहरणानि-खड्गादीनि यैस्ते च तथा पदत्रयस्य कर्मधारयः । 'माढीवरवम्मगुंडिया' माढीवरवर्मगुण्डिताः-तत्र-माढी=शरीरत्राणविशेषाः देशीशब्दोऽयं वरवर्माणि प्रधानकवचानि तैर्गुण्डिताः-आच्छादितशरीराः, आविद्धजालिकाः निबद्धलोहकचुकाः 'कवयकंडगिया' कवचकण्टकिताः सकण्टक कवचेन कण्ट किताः, 'उरसिरमुहबद्धकंठतोणा' उरः शिरोमुखबद्धकण्ठतोणाः तत्र ( संगामं अइवयंति ) वे स्वयमेव संग्राम में उतर आते हैं-युद्ध करने में प्रवृत्ति वाले हो जाते हैं ऐसे ये राजा लोग ( सण्णबद्ध पडियर उप्पा. डियचिंधपट्टगहियाउहपहरणा ) ( सण्णद्ध ) पहिले तो युद्धसामग्री से सज्जीभूत होते है, ( बद्धपडियर ) कवच से बांधकर अपने शरीर को सुरक्षित रखते हैं, (उप्पाडियचिंधपट्ट ) मस्तक पर रक्तपट्टादिरूप चिह्नविशेष को दृढतररूप में बाँधते हैं, (गहियाउहपहरणा) रिपु को नष्ट करने के लिये बाण आदि आयुधों को और खङ्ग आदि प्रहरणों को अपने पास में रखते हैं (माढीवर वम्मगुंडिया) माढी-शरीर त्राणविशेष एवं उत्तम कवच से इनका शरीर आच्छादित रहता है, (आविद्धजालिका ) इनके शरीर पर लोहनिर्मित कवच बंधा रहता है ( कवयकंडगिया) कॉण्टे वाले कवच से ये युक्त होते हैं, ( उरसिरमुहबद्ध अइवयंति" तो ते ४ २४सयाममा तरी ५3 छ-युद्ध ४२वाने तैयार २४ जय छ, मेवा ते २१ "सण्णद्धवद्धपडियरउप्पडिय-चिंधपट्टगहिया. उहपहरणा” “सण्णद्धा' ५i तो युद्धनी सामग्री Aart ४२वे छ, " बद्धपडियर" ५५२ ५७शन पोताना श२ने सुरक्षितमनाये छ. “ उप्पाडिय चिंधपट्ट” भरत: ५२ सास ५ मा पास मिलने भभूत त मधे “ गहियाउहपहरणा” दुश्मनना ना ४२वाने भोट पाए माविमायुधो भने तसवा२ मा शस्रो पोतानी पासे राणे छ “ माढीवरवम्मगुंडिया" भाढीશરીરના રક્ષણ માટેનું એક સાધન, અને ઉત્તમ બખતરથી પિતાના શરીરને माहित २ , “ आविद्धजालिका" तमना शरी२ ५२ सोढार्नु भत२ सांधेदु डाय छ, “कवयकंडगिया " तेमा xielni क्यथा युत डाय छे, શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy