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________________ प्रश्नव्याकरणसूत्रे धमणदुहणपोसणवणणदुवणवाहणादियाइं साहेति बहूणि गोमियाणं, धाउ-मणि-सिल-प्पवाल-रयणागरे य साहति आगरीणं, पुप्फविहिं च फलविहिं च साहेति मालियाणं अस्थमहुकोसए य साहति वणचराणं ॥ सू० ११ ॥ टीका--' एवमेव जंपमाणा' एवमेव जल्पन्तः-पूर्वोक्तरीत्या सावद्यमबुद्धिपूर्वकं वक्ष्यमाणं भाषमाणाः, 'महिसे सूकरे य साहेति घायगाणं' महिषान् सूकरांश्च साधयन्ति घातकानां' तस्मिन् वने बहवो महिषासूकराश्च सन्ति गच्छ तत्रे ' त्यादि तेषां घातकान् प्रति कथयन्ति तथा 'ससपसयरोहिसे य साहेति वागुरीणं' शशपसयरौहिषांश्च साधयन्ति वागुरिणां-तत्र शशाः प्रसिद्धाः पसय देशी शब्दोऽयं मृगवाचकः, रोहिपाः मृगविशेषा एव, तान् जालेन मृगघातकान् पति 'तत्र मृगाः-सन्ती'ति साधयन्ति-कथयन्ति, तित्तिरवट्टगलावगे य कविंजल फिर क्या करते हैं सो कहते हैं-' एवमेव' इत्यादि । टीकार्थ-( एवमेव) पूर्वोक्त रीति से अबुद्धिपूर्वक (जंपमाणा) वक्ष्यमाण आगे कहे जाने वाले सावद्य वचनों को कहते हुए वे महिषादि प्राणियों को शिकारी के लिये बतला देते हैं वे इस प्रकार-(महिसे करे य घायगाणं साहेति ) महिषों और सूकरों को मरवाने के अभिप्राय से घातकों के प्रति “ उस वन में जाओ वहां अनेक महिष और सूकर हैं" इस प्रकार कहते हैं। तथा ( ससपसयरोहिसे य साहेति वागुरीणं) शश-खरगोश, पसय-मृग एवं रोहिष-मृग विशेष, इन्हें वागुरिकोंजाल से पकड़ने वाले मृग घातकों से अर्थात् अहेरियों से-जाओ उस वन में बहुत से मृग आदि जानवर हैं उन्हें मारो" इस प्रकार कहते ___4जी ते भृपावादी शु ४३ छ ते ४ छ—“ एवमेव " त्यात टीथ-"एवमेव" पूर्वरित प्रारे अमुद्धिपूर्वः "जंपमाणा" 241311 उवामा આવનાર સાવદ્ય (પાપયુક્ત) વચને કહીને તેઓ મહિષાદિ પ્રાણીઓ શિકારીને બતાવી દે છે. તે આ પ્રમાણે છે. “महिसे सूकरे य घायगाणं साहेति" पा31 मने सूवरना इत्या ४२वान માટે શિકારીઓને તે કહે છે કે “આ વનમાં જાઓ. ત્યાં અનેક પાડા અને सू१२ छ" तथा " ससपसयरोहिसे य साहेति वागुरीण' तथा सससi, भृग અને રોહિષ-મૃગ વિશેષ-ને જાળથી પકડનાર વાઘરી આદિ મૃગઘાતકોને તે કહે छे है " onमे, २ वनमा घgi भृ नन। छे, तेमने मारे। '' तित्ति શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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