SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 254
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ___ प्रश्रव्याकरणसूत्रे केचित् नैयायिका इत्यर्थः, तद् यथा वित्यङ्करादिकं कर्तृजन्यं कार्यत्वात् घटवदिति । जलबुदादौ हेतौरनैकान्तिकत्वेनास्यालीकता । एवं ‘कसिणमेव ' कृत्स्नमेव-सकलमेव 'जगं' जगत् ‘विण्हुमयं' विष्णुमयं = विष्णुस्वरूपमिति 'केइ केचित् वदन्ति तन्मतानुयायिनः, यथा "जले विष्णुः स्थले विष्णु,-विष्णुः पर्वतमस्तके । ज्वालामालाकुले विष्णुः, सर्व विष्णुमयं जगत् ॥१॥” इति । ऐसा मानते हैं कि यह जगत् प्रजापति-ब्रह्माने बनाया है। कितनेक कहते हैं कि यह जगत् ईश्वरने बनाया है सो इस प्रकार की मान्यता में अलीकता प्रमाणबाधित होने के कारण आती है। तथा जो नैयायिक जन ऐसा कहते हैं कि यह जगत् ईश्वर ने बनाया है, क्यों कि यह घटादिकी तरह कार्य है " क्षित्यकुरादिकं कर्तृजन्यं कार्यत्वात् घटवत्" सो कार्यत्वरूप हेतु मेंजल बुद्बुद आदि द्वारा अनैकान्तिक दोष आता है, इसलिये यह उनकाकथन असत्यरूप प्रमाणित हो जाता है। ( एवं विण्हुमयं कसिणमेव य जगंति केइ ) इसी तरह यह सकल जगत् विष्णुमय है ऐसा भी कोई २ कहते हैं, क्यों कि उनकी ऐसी मान्यता है कि "जले विष्णुः स्थले विष्णु-विष्णुः पर्वतमस्तके। ज्वालामाला कुले विष्णुः सर्व विष्णुमयं जगत् ॥१॥" जल में विष्णु हैं, थल में विष्णु हैं, पर्वत की चोटी ऊपर विष्णु हैं, उ० पy से विषेरे ४ छ.- ‘पयावइणा" त्यादि A12-" पयावइणा इस्सरेण य कयत्ति केइ” टस हो। सेतु माने છે કે આ જગત પ્રજાપતિ-બ્રહ્માએ બનાવ્યું છે. કેટલાક કહે છે કે આ જગત ઈશ્વરે બનાવ્યું છે, તે તે પ્રકારની માન્યતામાં મૃષાવાદ-અસત્ય દેષ પ્રમાણબાધિત હિોવાને કારણે આવે છે. તથા જે નિયાયિક એવું કહે છે કે આ જગત ઈશ્વરે मनाव्यु छ. १२ ते पाहिन रेबु आय छ, “क्षियकुरादिकं कर्तजन्य कार्यत्वात् घटवत् " तो १३५ तुमा मुमुद माहि द्वारा अनन्ति होष भाव छ, तेथी तभनु ते ४थन असत्य ३५ सिद्ध थाय छे. “ एवं विण्हुमय कसिणमेव य जगंति केइ" को प्रमाणे मा समस्त रात विषमय छ એવું પણ કેટલાક લેકે કહે છે, કારણ કે તેમની એવી માન્યતા છે કે "जले विष्णुः स्थले विष्णुः विष्णुः पर्वतमस्तके। ज्वालामालाकुले विष्णुः, सर्व विष्णुमयं जगत् ॥ १॥ જળમાં વિષ્ણુ છે, સ્થળમાં વિષ્ણુ છે, પર્વતના શિખર પર વિષ્ણુ છે, શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy