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प्रश्रव्याकरणसूत्रे
'हं' इति वाक्यालङ्कारे तेषां ' वयांसि ' वदने= मुखे 'छुभंति' क्षिपन्ति = पाययन्तीत्यर्थः ।। सू० २९ ॥
दड्डा
' इत्यादि ।
ततो नारकाः किं कुर्वन्ति ? तदाह - ' तेण मूलम् - तेण दडा संतो रसंति य भीमाई विस्सराई रुवंति य कलुगाई पारवेयगा इव एवं पलविय विलाव कलुणो कांदय - बहुरुन्न रुइय सदो परिदेविय रुद्धवद्वय नारगारव संकुलो णीसिट्टो || सू० ३० ॥
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टीका' तेण तेन=मुख निक्षिप्तेन तप्तेन त्रपुणा ' दडासंतो ' दग्धाः सन्तः ' भीमाई' भीमान् =भयानकान् = हृदयक्षोभजनकान् 'विस्सराई 'विस्वरान् =आर्तनादान् 'हा ! हा ! ' हतावयम् ' इत्यादिरूपान् 'रसंति' रसन्ति = कुर्वन्ति । सूत्रे प्राकृतत्वान्नपुंसकम् । तथा 'पारेवयगाइव' पारावतकाइव = कपोता इव ' कलुगाई' करुणकानि हृदयद्रावकाणि ' रुवंति ' रुदन्ति । एवं लहं ) कलकलाते उस अत्यंत गरम सीसे को ( वयसि ) मुख में (छुभंति ) डाल देते हैं, अर्थात् उन नारकियों को पिला देते हैं ।। सू.२९ ॥
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इसके बाद वे नारकी क्या करते हैं अब सूत्रकार इस विषय को स्पष्ट करते हैं - ' ते दा संतो ' इत्यादि ।
टीकार्य - (तेण दड्ढा संतो) मुख में जबर्दस्ती फाड़कर डाले गये उस तप्त सीसेसे दग्ध हुए वे नारकी (भीमाई) हृदय को क्षोभ पहुँचाने वाले ऐसे (विस्सराई ) आर्त्तनादों को ( रसंति) करते हैं- “ हाय ! हाय ! मार डाला इस प्रकार से चिल्लाते हैं । तथा ( पारेवयगा इव ) कब्रूतरों की तरह ( लुगाईं) हृदय को द्रवीभूत करने वाला आक्रंदन
"
पला
डायोथी “ विहाडेउ " महोणां उरीने तेमां "कलकलह " जजता ते अत्यंत गरभ सीसाने ' वयणंसि" भुमनां " छुभंति " रेडी छे छे. भेटले ते नारકીઆને પીવરાવે છે. | સૂ. ૨૯ ॥
ત્યારબાદ તે નારકી જીવા શુ કરે છે, વિષયને હવે સૂત્રકાર સ્પષ્ટ કરે " तेण दड्ढा संतो " इत्याहि.
टीडार्थ - " तेण दड्ढा संतो " नेर ब्लुसभथी भोटु हो उरीने रेडवाभां यावेस ते गरभ सीसाथी हाञेसा ते नारडी वो "भीमाई” हृहयने क्षाल यभाडे तेवा "विस्सराई" मर्त्तनाही "रसंति" अरे छे - " हाय ! हाय ! भारी नाच्या श्या अारनी थीसी पाडे छे; तथा “पारेवयगाइव" अणूतरोनी प्रेम " कलुणगाई " हृदय द्वावई माईर्इ “रुवंति " अरे छे, " एवं " आ अझरना तेभना " पलविय
"
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર