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________________ १०२ प्रश्रव्याकरणसूत्रे णाणि' शाल्मलि तीक्ष्णाग्रलोहकण्टकाभिसारणापसारणानि शाल्मलि:=' सेमल' इति ख्यातो वृक्षविशेषस्तस्य ये तीक्ष्णाग्रा लोहकण्टका इब कण्टकाः, तेषु अभिसारणापसारणानि च = कर्षणापकर्वणानि ' फालणविदारणाणि ' फालनानि-वस्त्रवत्स्फाटनानि, विदारणानि-क्रकचादिना काष्ठवद् द्वैधीकरणानि 'अवकोडगवंधणाणि' अवकोटकवन्धनानि ग्रीवाया हस्तयोश्च पश्चाद्भागानयनेनबन्धनानि, ' लट्ठिसयतालणाणि' यष्टिशतताड़नानि-यष्टिशतैस्ताड़नानि, 'गलगबलुल्लंवणाणि ' गलकबलोल्लम्बनानि-गल एव गलकः कण्ठः, तस्मिन् बलात् बलपूर्वकम् उल्लम्बनानि-वृक्षशाखादौ उद्घन्धनानि, 'मूलग्ग भेयणाणि य' शूलाग्रभेदनानि चम्-शूलाग्रेण शूलाग्रभागेन भेदनानि, शूलारोपणानि वा, 'आएस पवंचणाणि ' आदेशप्रवञ्चनानि आदेशेन आज्ञया असत्यवस्तु विषयया उनका वह शरीर अर्पित किया जाता है, (सामलितिक्खग्गा-लोहकंटग अभिसारणा-पसारणाणि ) सेमर वृक्ष के लोहकण्टक के समान नुकीले कांटा के ऊपर उनका कर्षणापकर्षण किया जाता है उन्हें आगे पीछे खेंचा जाता है, (फालण विदारणाणि य) फालन-वस्त्र के समान फाड़ना और करोति आदि के द्वारा काष्ठ की तरह चीरना भी उनका वहां किया जाता है । ( अवकोडगबंधणाणि ) उनको ग्रीवा और दोनों हाथ पीछे के भाग की तरफ करके बांधे जाते हैं । ( लट्ठिसयताडणाणि य ) सैकडों लाठियों की उन पर वहां मार पडती है । (गलगबललंबणाणि य) जबर्दस्ती उनके गलों को वृक्ष की शाखा पर बांधकर लटकाया जाता है। (सूलग्गभेयणाणि य ) शूल के अग्रभाग से उनके शरीर का भेदन किया जाता है । अथवा शूली के ऊपर उन्हे लटकाया जाता है। (आए. तेभन ते शरीर म५५ ४२राय छे. “सामलितिक्खग्गलोहकंटग-अभिसारणा -पसारणाणि य” सेभ२ वृक्षना दोन समान मा२ टा। ५२ તેમનું કર્ષણપકર્ષણ કરાય છે–તેમને આગળ પાછળ ખેંચવામાં આવે છે. "फालणविदारणाणि य" त्यो भने रखनी भ. ३७वामा मावे छ भने કરવત આદિ દ્વારા જેમ લાકડાને ચીરવામાં આવે છે તેમ તેમને પણ ચીરपामां आवे छ “ अवकोडगबंधणाणि" भनी । मने मान डाय पाछन। लागमा २मावान भावामा मावे छ. ' लट्रिसयताडणाणि य" त्यो भने से साडीयाना भा२ ५3 छ. “गलगबललुबणाणि य" २ जुसमथी तेभनi niमाधान वृक्षानी जियो ५२ तेभने सावधामा मावे छ,“ सूलग्ग भेयणाणि य" शूनी Ajथा तभनां शरीरनु सहन ४२वामा मा छे मथवा શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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