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________________ मुदर्शिनी टीका अ० १ सू० २६ कुंभोदुःखनिरूपणम् १०१ विशेषः, महाकुम्भी-घटाकृतिपात्रविशेषस्तयोमध्ये, सूत्रे जातित्वादेकवचनम् । 'पयण' पवचन-मोदनादेरिव ' पउलण' प्रकुलनम् सीसकवद्गालनम् , 'तबगतलण' तपकतलनं-तपको लोहपात्रविशेषः 'तवा' इति भाषाप्रसिद्धः, तस्मिन् तैलादिभिरपूपवत्तलनम् , 'भट्ठभज्जण' भ्राष्ट्रभर्जनं च-भ्राष्ट्रभर्जनपात्रं-'भाड' इति प्रसिद्धः, तत्र भर्जनं चणकादेरिव, इत्येषां द्वन्द्वस्तानि च 'लोहकडाहुक्कडणाणि य' लोहकटाहोत्क्वथनानि च लोहकटाहः='कढाई' इति भाषापसिद्धः, तत्र उत्क्वथनानि औषधिवदुत्कालनानि 'कोवलिकरणकोट्टणाणि' कोवलिकरणकोटनानि% कुट्टेन क्रीडया बलिकरणाय, कुट्टनानि-करचरणाद्यवयवत्रोटनानि-शरीरं 'खण्डशः' कृत्वा काकादिभ्योऽर्पणानीत्यर्थः, 'सामलितिक्खग्गलोहकंटगअभिसारणापसार'कंदुमहाकुंभीए' इत्यादि।। टीकार्थ-नारकीजीव नरकों मे (कंदुमहाकुंभीए) कंदु-लोहमय विशाल पात्राविशेष में तथा घटाकृति जैसे महाकुंभी में ओदनादिक की तरह (पयण-पउलण-तवग-तलण-भट्ठभज्जणाणि य) (पयण ) पकाये जाने के (पउलण) सीसक-रांग की तरह गलाये जाने के, (तवगतलण) गर्म लोह के तवा पर तैलादिक में तले गये पूआ आदि की तरह तले जाने के ( भट्ठभज्जणाणि य) भांड में भुंजे गये चना आदि की तरह भुंजे जाने के दुःखों को प्राप्त करते हैं। तथा ( लोहकडाहुकडणाणि य ) जैसे लोहे की कढाई में औषधियां उबाली जाती हैं उसी तरह वहां पर वे भी बड़े २ कडाहों में उबाले जाते हैं । ( कोहबलिकरणकोणाणि य) बलि देने के लिये अनायास ही उनके कर, चरण आदि अवयवों को वहां तोड दिया जाता है-शरीर को खंड २ करके वहां काकादिकों के लिये महाकुंभीए " त्यादि टीजथ-नाणी व नरमा "कंदुमहाकुभीए " "कंदु" सोढाना विशण पात्र-विशेषमा, तथा घाना मा२ना भरालीमा साहनानी म “पयणपउलण, तवग, तलण, भट्टभज्जणाणि य” " पयण" २ धावानां, “पउलण " सीसानी रेभ सागवानां“ तवगतलण" सोढाना गरम तेसना मां तसना भासपूना माहिना म सानो, “ भट्टभज्जणाणि य" तापमा शात यए! माहिनी म शेवान भी मनुसवे छ. तथा " लोहकडा हुकड्ढणाणि य" वी शते खोटानी तवीमामा औषधियो य छ । शते त्यो भने पण मोटा तापायामा वामां भाव छ, “कोहवलि करणकोटणाणि य” पनि वान भाटे मयान तभना हाथ ५५ माहिसक्यवार्नु ત્યાં છેદન કરવામાં આવે છે. શરીરના ટૂકડે ટૂકડા કરી ત્યાં કાગડા આદિને શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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