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________________ ७४ अन्तकृतदशाङ्गसूत्रे देवं एवं वयासी-एवं खल्लु अहं पुत्ता! सरिसए जाव समाणे सत्त पुत्ते पयाया, नो चेव णं मए एगस्स वि बालत्तणे अणुभूए, तुम पि य णं पुत्ता ! ममं छण्हं छण्हं मासाणं अंतियं पायवंदए हवमागच्छसि, तं धन्नाओ गं ताओ अम्मयाओ जाव झियामि ॥ सू० १८॥ ॥ीका ॥ 'तए णं इत्यादि । 'तए णं से कण्हे वासुदेवे हाए जाव विभूसिए' ततः खलु स कृष्णो वासुदेवः स्नातो यावद् विभूषितः, 'देवईए देवीए पायवंदए हव्वमागच्छइ' देवक्या देव्याः पादवन्दकः हव्वंशीघ्रमागच्छति 'तए णं से कण्हे वासुदेवे ततः खलु स कृष्णो वासदेवः 'देवइं देवि पासइ' देवकों देवीं पश्यति, 'पासित्ता देवईए देवीए पायग्गहणं करेइ' दृष्ट्वा देवक्या देव्याः पादग्रहणं करोति-चरणवन्दनं करोति, 'करित्ता' कृत्वा 'देवइं देवि देवकी देवीम् ‘एवं वयासी' एवमवदत्-'अण्णया णं अम्मो!' अन्यदा खलु अम्ब ! 'तुब्भे ममं पासित्ता हट्ट जाव भवह' यूयं मां दृष्ट्वा, हृष्ट यावत्-हृष्टतुष्टचित्तानन्दिता इत्यादि पूर्वोक्तं विज्ञेयम् , भवथ, 'किं णं अम्मो!' किं खलु अम्ब ! 'अज तुम्भे ओहय जाव झियायह' अद्य यूयम् अवहत यावत् ध्यायथ, अवहतमनः-संकल्पा यावत् पूर्वोक्तोऽर्थोऽनुसन्धेयः, ___उसके बाद वह कृष्ण वासुदेव स्नान करके और यावत् सभी अलंकारों से अलंकृत हो देवकी देवी के चरणवन्दन के लिये आये, वही आकर उनके चरण में जाकर वन्दन किया और इस प्रकार कहा- हे माता ! जब मैं पहिले तुम्हारे चरणवन्दन के लिये आता था तब उस समय मुझे देखकर तुम्हारा हृदय आनन्दित हो उठता था, परन्तु आज तुम्हारी दशा दुसरी ही दिखाई दे रही है। क्यों माता! तुम दुःखित मनसे उदास होकर आज क्या सोच ત્યારપછી તે કૃષ્ણ વાસુદેવ સ્નાન કરીને તથા તમામ અલંકારથી વિભૂષિત થઈ દેવકી દેવીનાં ચરણવંદન માટે આવ્યા, ત્યાં આવીને તેનાં ચરણે વંદન કર્યા, તથા આ શ્રી અન્તકૃત દશાંગ સૂત્ર
SR No.006336
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrut Dashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages390
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_antkrutdasha
File Size18 MB
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