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________________ अगारधर्मसञ्जीवनी टीका अ० १ सू०५८ 'अरिहंतचेइय' शब्दार्थ निरूपणम् ३३-१ शास्त्राभिधानादिप्रसिद्धिरेव प्रवृत्तिनिमित्तमितरथा गो- गवय- कुशल- शङ्ख-शण्ढा दिशब्दे वर्थव्यभिचारो भवता कालत्रयेऽपि दुर्निवारः प्रसज्जेत, न ह्येतेषु व्युत्पत्योपलक्ष्यमा णागमन. गोमाप्ति - कुशग्रहण- शमनादयः क्रियाः प्रवृत्तिनिमित्ततया घटन्ते शयनादिकालेऽपि सास्नादिमत्वमात्रमर्थमभिप्रेत्य गवादिशब्दानां प्रवृत्तेर्दर्शनात् किञ्चैवं सति चैत्यो देशिकस्य = साधूनुद्दिश्य कृतस्य " इति प्रागुक्तं बृहत्कल्पभाष्यमप्यसामञ्जस्यमापद्येतेत्यास्तां विस्तरः ॥ " वही प्रसिद्धि उनका प्रवृत्ति - निमित्त है । यदि ऐसा न माना जाय तो 'गो, गवय, कुशक, शंख, शंढ, आदि शब्दोंमें अर्थ उलट-पलट होगा और उसे आप तीन कालमें रोक नहीं सकेंगे । 'गो' का अर्थ हैं जो गमन करे, 'गवय' का अर्थ है 'गो' की प्राप्ति, 'कुशल' का अर्थ है कुश ( डाम ) को लानेवाला, 'शंख' और 'शंढ' का अर्थ है शमन करनेवाला । इनमें प्रवृत्तिनिमित्त नहीं घटता है । यदि प्रवृत्तिनिमित्तसे ही व्यवहार माना जाय तो गाय जिस समय गमन न कर रहो हो सोती हो उस समय उसे गो नहीं कहना चाहिए | परन्तु सास्नादिमत्त्व ( गले में लटकती हुई कम्बल आदि ) के कारण उसे उस समय भी गो कहते हैं, इस लिए शास्त्र, कोष आदिमें जो अर्थ प्रसिद्ध हो गया है वही रूढ शब्दोंका प्रवृत्ति-निमित्त मानना चाहिए। एक बात और है. ऐसा मानने से ही पूर्वोक्त बृहत्कल्प भाष्य भी ठीक बैठता है, जिसमें लिखा है कि 'चैत्यको उद्देश करके ' अर्थात् साधुओंके लिए किये गये अशन आदिका । यदि चैत्यका अर्थ साधु नहीं मानोगे तो यह भाष्य भानवामां आवे तो "गो, जवय, कुशल, शंभ, शंदे" आदि शब्दोर्मा अर्थ सटપાલટ થઇ જશે અને આપ તેને ત્રણ કાળમાં રોકી નહિ શકે. ગે' ના અર્થ જે मन उरेते, गवयन अर्थ छे गोनी प्राप्ति, 'शव' नो अर्थ हे कुश (अल) ने लावनार, 'श'अ' मने 'शंद'ना अर्थ हे शमन पुरनार; मेमां प्रवृत्ति-निमित्त घटतुખંધ બેસતું નથી. એ પ્રવૃતિ–નિમિત્તથી જ વ્યવહાર માનવામાં આવે તે ગાય જે સમયે ગમન ન કરતી હાય-સૂતી હાય, તે સમયે તેને ‘ગેટ' ન કહેવી જોઇએ, પરંતુ સાસ્નાદિમત્વ (ગળામાં લટકતી કમ્બલ આદિ)ને કારણે તેને તે સમયે પણ ગે કહેછે, તેથી શાસ્ત્ર, કેષ આદિમાં જે અર્થ પ્રસિદ્ધ થઇ ગયા છે. તેજ રૂઢ શબ્દોનું પ્રવૃત્તિ— નિમિત્ત માનવું જોઇએ. એક બીજી વાત પણ એ છે એમ માનવાથી પૂર્વકત બૃહત્કલ્પ ભાષ્ય પણ ખરાખર બંધ બેસે છે, જેમાં લખ્યું છે કે શૈત્યને ઉદ્દેશ કરીને” અર્થાત-સાધુઓને માટે તૈયાર કરવામાં આવેલા અશનાદિનું. ચૈત્યના અર્થ સાધુ જો ઉપાસક દશાંગ સૂત્ર
SR No.006335
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages587
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_upasakdasha
File Size30 MB
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