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________________ उपासकदशाङ्गमत्रे (१२) वृष्णिदशा-इदमुपाङ्गं दृष्टिवादाङ्गस्य । अस्योपाङ्गस्य 'वह्निदशा' इति नामान्तरम् । इमानि निरयावलिकादिनि पञ्चोपाङ्गानि निरयावलिकाशब्देनाप्यभिधीयन्ते । मूलसूत्राणि (४) (१) नन्दिमूत्रम्-अत्र ज्ञानपञ्चक-तभेदवर्णनम् । (२) अनुयोगद्वारसूत्रम्-अत्रोपक्रमादिनिरूपणम् । (३) दशवकालिकसूत्रम्-अत्र हिंसासंयमतपोरूपाणां साधुधर्माणां निरूपणम्। (४) उत्तराध्ययनमूत्रम्-इह विनयश्रुतादिप्रतिपादनम् । छेदसूत्राणि (४] (१) बृहत्कल्पमूत्रम् -अत्र मूलगुणापराधप्रायश्चित्तानामुनरगुणापराधपायश्चित्तानां च निरूपणम् । (१२) वृष्णिदशा- यह दृष्टिवादका उपांग है। इसका दूसरा नाम 'वह्निदशा' भी है। . ___ इन निरयावलिका आदि पांचों उपागोंको एक 'निरयावलिका' शब्दसे भी कहते है। (चार मूलसूत्र) (१) नन्दिसूत्र-इसमें पांच ज्ञानोंका और उनके भेद-प्रभेद आदिका वर्णन है। (२) अनुयोगद्वारसूत्र-इसमें उपक्रम आदिका विवेचन है । (३) दशवकालिकसूत्र-इसमें अहिंसा संयम और तप रूप साधुके धर्मोका कथन है। (४) उत्तराध्ययनसूत्र-इसमें विनयश्रुत आदिकी प्ररूपणा है। (१२) वृष्णुि-u-al टिपाइनु sin छ. मेनु मी नाम 'पहिशा' આ નિરયાવલિકા આદિ પાંચે ઉપાંગોને એક “નિરયાવલિકા' શબ્દથી પણ ઓળખવામાં આવે છે. ચાર ભૂલસૂત્ર, (१) नन्दिसूत्र-मेभा पांय ज्ञानन भने तेना मेह-लेह माहिर्नु पर्थन छे. (२) अनुयोगद्धारासूत्र-मेमा ५४भ मानि विवेयन छे. (3) शवैतिसूत्र-मेमा अडिसा, सयम भने त५ ३५ी साधनु. ४थन छे. (४) उत्तराध्ययनसूत्र-मेमा विनयश्रुत मानी ५३पल्या छ. ઉપાસક દશાંગ સૂત્ર
SR No.006335
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages587
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_upasakdasha
File Size30 MB
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