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________________ उपासकदशाङ्गमत्रे पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे ॥७॥ तत्थ णं कोल्लाए सन्निवेसे आणंदस्स गाहावइस्स बहुए मित्तणाइणियगसयणसंबंधिपरिजणे परिवसइ, अड़े-जाव-अपरिभूए ॥८॥ छाया-तस्मात्खलु वाणिजग्रामाद् बहिरुत्तरपौरस्त्ये दिग्भागेऽत्र खलु कोल्लाको नाम सन्निवेशोऽभवत् । ऋद्ध-स्तिमित-यावत्प्रासादीयोदर्शनीयोऽभिरूपः प्रतिरूपः ॥७॥ तत्र खलु कौल्लाके सन्निवेशे आनन्दस्य गाथापतेबहुको मित्र-ज्ञाति-निजकस्वजन-संबन्धिपरिजनः परिवसति आढयो यावदपरिभूतः ॥८॥ ____टीका-'तस्मा-' दित्यारभ्य 'दिग्भागे'-इत्यन्तो व्याख्यातपूर्वः, अत्र अस्मिन् काले, यद्वा पूर्वप्रक्रान्ते इत्यर्थः, इदमेतददः-शब्दाः प्रक्रान्तप्रसिद्धानुभूतार्थका (मूलका अर्थ) 'तस्स णं वाणियगामस्स' इत्यादि ॥ ७ । ८ ॥ उस वाणिजग्राम नगरके बाहर उत्तर-पूर्वके दिग्भाग (ईशान कोण) में कोल्लाक नामक सन्निवेश था। वह ऋद्ध, स्तिमित, यावत् प्रासादीय, दर्शनीय अभिरूप और प्रतिरूप था। उस कोल्लाक सन्निवेश में आनन्द गाथापतिके बहुतसे मित्र, ज्ञाति (जाति), निजक, स्वजन, सम्बन्धी और परिजन निवास करते थे। वे आढय यावत अपरिभूत थे ॥ ७८ ॥ __ (टीकाका अर्थ). 'तस्स' से लेकर 'दिसीभाए' तक पदों का व्याख्यान पहले किया जा | चुका हैं । एत्थ' (अत्र)का अर्थ है 'इस समय में' अथवा 'पूर्व प्रकरणसे મૂળને અર્થ तस्स ण वाणियगामस्स त्यात (७-८) તે વાણિજ ગ્રામ નગરની બહાર ઉત્તર-પૂર્વના દિગ્માગ (ઈશાન કોણ)માં કેલ્લાક નામે સન્નિવેશ હતો. તે ઋદ્ધ, સ્વિમિત, યાવત્ પ્રાસાદીય, દર્શનીય અભિરૂપ, અને પ્રતિરૂપઘણાજ સુંદર હતો તે કલાક સન્નિવેશમાં આનંદ ગાથાપતિના ઘણા મિત્ર જ્ઞાતિ (જાતિ), નિજક, વજન, સંબંધી અને પરિજને નિવાસ ४२त। ता, तेमा माढय यावत अपरिभूत ता. (७-८) अनी म 'तस्स' थी भांडीने 'दिसीभाए' सुधीन पोतु व्याध्यान पडला ४२१ामा मायु . एत्थ (मत्रानो अर्थ छ 'AL समयमां' अथवा 'पूर्व प्र४२९या मायाम, इदम्, एतत् भने अदस श६ प्रत, प्रसिद्ध भने अनुभूत माना ઉપાસક દશાંગ સૂત્ર
SR No.006335
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages587
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_upasakdasha
File Size30 MB
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