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________________ ७६ ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे पक्खालिजमाणस्स सोही भवइ ? हंता भवइ, एवामेव सुदं. सणा! अम्हंपि पाणाइवायवेरमणेणं अत्थि सोही, जहा वा तस्स रुहिरकयस्स वत्थस्स जाव सुद्धेणं वारिणा पक्खालिजमाणस्स अस्थि सोही, तएणं से सुदंसणे संबुद्धे थावच्चापुत्तं वंदइ, नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-इच्छामिणं भंते ! धम्म सोच्चा जाणित्तए जाव समणोवासए जाए अहिगयजीवाजीवे जाव पडिलामेमाणे विहरइ॥ सू० २१ ॥ (तएणं थावच्चा० ) इत्यादि। टीका- ततः खलु स्थापत्यापुत्रः सुदर्शनमेवमवादीत-तव खलु सुदर्शनः किं मूलको धर्मः प्रज्ञप्तः ? एवं स्थापत्यापुत्रेण पृष्टः सन् सुदर्शनो वदति- अम्हाणं' इत्यादि । हे देवानुप्रिय ! अस्माकं शौचमूलो धर्मः प्रज्ञप्तः,यावत् स्वर्ग गच्छन्ति अत्र यावच्छन्देन- सेऽवि य सोए दुविहे पनत्ते तं जहा दव्वसोए य भाव तएणं थावच्चा पुत्ते इत्यादि । टीकार्थ-(तएणं थावच्यापुत्ते) इस प्रकार कहने के बाद स्थापत्यापुत्र अनगार ने पुनः (सुदंसणं एवं) सुदर्शन से इस प्रकार कहा-( तुम्भेणं सुदंसणा किं मूलए धम्मे पन्नत्ते हे सुदर्शन ! तुम्हारा धर्म किं मूलक प्रज्ञप्त हुआ है ( अम्हाणं देवाणुप्पिया ! सोयमूले धम्मे पन्नत्ते ) तब सुदर्शनने कहा हे देवनुप्रिय ! हमारा धर्म शौचमूलक प्रज्ञप्त हुआ है। (जाव सग्गं गच्छंति) इस सुदर्शन के कथन " में स्वर्ग जाते हैं " यहां तक का पाठ लगा लेना चाहिये-जैसे-"सोवियसोए दुविहे पन्नत्ते तंजहा 'तएणं थावच्चा पुत्ते' इत्यादि । टी -(तएणं थावच्चापुत्ते) (सुदसण एव) । शत पहेश सावता स्था५त्यापुत्र मनारे ३री, (सुदसण एवं) सुशनने समापता यु-(तुब्भेणं सुद सणा! किं मूलए धम्भे पन्नत्ते)डे सुशन भानुभूग शु प्रशस्त थयु छ ? ( अम्हाण देवाणुप्पिया ! सोयमूले धम्मे पन्नत्ते) ८१५ मापता सुशन "पानुप्रिय ! भा२। धमनु भू शौय (पवित्रता) छ.' से भारी शीय भू छ. (जाव सग्गं गच्छंति) 'यावतू' स्वाभा पाय छ " सुश नना थनमा मडी सुधी सेवु नये. म “ सो विय सोए दुविहे पन्नते त जहा શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૨
SR No.006333
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size47 MB
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