SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ०५ स्थापत्यापुत्रनिष्क्रमणम ३३ मूलमू-तएणं से थावच्चापुत्ते कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ते समाणे कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-जइ णं तुम देवाणुप्पिया! मम जीवियंतकरणं मच्चु एज्जमाणं निवारेसि जरं वा सरीररूवविणासिणि सरीरं वा अइवयमाणं निवारेसि, तएणं अहं तब बाहुच्छाया परिग्गहिए विउले माणुस्सए कामभोगे भुंजमाणे विहरामि ॥ सू० १३॥ ___टीका- 'तएणं से थावच्चापुत्ते' इत्यादि । ततः खलु स स्थापत्यापुत्रः कृष्णवासुदेवेनैव मुक्तः सन् कृष्णं वासुदेवमेवमवादोत्-हे देवानुप्रिय ! यदि खलु त्वं मम " जीवियंतकरण " जीवितान्तकरणं जीवन विनाशकारकं, ‘मच्छु' मृत्यु-मरणदुःखं, 'एज्जमाणं' एजमानन्=आगच्छन्तं, निवारयसि, 'जर वा' कारण इस का यह है कि मेरे राज्य में तुम्हें कुछ भी कष्ट नहीं होगा। मैं सदा तुम्हारी सहायता करता रहूँगा। क्यों व्यर्थ में परम कष्ट साध्य दीक्षा ग्रहण करते हो- छोड़ो इसे । सूत्र " ११" 'तएणं से थावच्चापुत्ते कण्हे णं' इत्यादि । टीकार्थ-(तएणं) इसके बाद (से थावच्चापुत्ते कण्हे णं वासुदेवेणं) कुष्णवासुदेव के द्वारा इस प्रकार कहे गये उस स्थापत्यपुत्र ने ( कण्हं वासुदेवं एवं वयासी) कृष्णवासुदेव से इस प्रकार कहा-( जइणं तुम देवाणुप्पियो मम जीवियंतकरणमच्चु एजमाणं निवारेसि जरं वा सरीरस्वविणासिणि सरीरंवा अइवलमाणं निवारेसि ) हे देवानुप्रिय ? यदि आपमेरे जीवन का अन्तकरने वाली आते हुए मृत्यु को मुझ से दूर રાજ્યમાં રહેતા તમને કઈ પણ જાતની તકલીફ થશે નહિ હંમેશા હું તમારી મદદ માટે પડખે ઉભેછું શું કામ વ્યર્થ કષ્ટ સાય-કઠણ-દીક્ષા ગ્રહણ કરવા तैयार थय॥ छ। छोडी २ सपने ! सूत्र “११” ( तएणं से थावच्चापुत्ते कण्हेणं इत्यादि ) । Nथ-(त एण) त्या२ ५छ। (से थावच्चापुत्ते कण्हेण वासुदेवेण') वासुदेव १34॥ शते ४वामेसा स्था५त्या पुत्र, ( कण्ह वासुदेव एवं वयासी ) ४०५. पासुवने मा प्रमाणे ४ह्यु-( जण तुम देवाणुप्पिया मम जीवियतकरणमच्चू एज्जमाण निवारेसि जर वा सरीररूवविणासिणि सरीर वा अइवयमाण निवारेसि ) वानुप्रिय ! ने तमे भा२॥ न न ना ४२ना२ भृत्यु ते શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૨
SR No.006333
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy