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________________ - पसा - - - ३३८ ज्ञाताधर्मकथाङ्गस्त्रे गण्डदेशं प्रविष्टौ वदने गण्डदेशी कपोलभागौ यस्य तत्तथा, 'चीणचिपिटनासियं' चीनचिपिटनासिकं, चीना-हस्बा चिपिटा च नासिका यस्य तत्तथा, 'विगयभुग्गभग्गभुमयं ' विकृतभुग्नभग्नभ्रुवम् विकृते सविकारे भुग्ने भग्ने अतीववक्रे भुवौ यस्य तत् तथा, खज्जोयगदित्तचक्खुरागं' खद्योतकदीप्तचक्षुराग, खद्योतकवद्दीप्तश्चक्षुरागो लोचनरक्तत्वं यस्य तत्तथा, उत्तासणगं' उत्रासनकं भयानकं विशालवक्षस्कं विस्तीरः स्थलं, विशालकुक्षि विस्तीर्णादरम् , प्रलम्बकुक्षि-दीर्घोदरम् , ' पहसियपयलियं पयडियगत्तं ' प्रहसितप्रचलितमपतितगात्रम् । प्रहसितानि प्रविकासितानि प्रचलितानि-प्रकम्पितानि प्रपतितानि प्रकर्षण श्लथीभूतानि गा. आणि यस्य तत्तथा, पणञ्चमाणं ' प्रनृत्यत् 'अप्फोडतं ' आस्फोटयत् , अभिवयंत' अभिव्रजत् , ' अभिगज्जत ' अभिगर्जत् , बहुसो ' अट्टहासे विणिम्मुयंत ' बहुनिकल रहे थे दोनों कपोल इसके मुख के भीतर घुसे हुए थे-अर्थात् दोनों गाल इस के पिच के हुए थे। नाक इस की छोटी और चपटी थी । इस की दोनों भौहें विकृत भुग्न और भग्न थी। अथवा भुग्न भग्न थी अत्यन्त वक्र थी-(खज्जोयगदित्तचक्खुरागं, उत्तासणगं विसालवच्छं, विसालकुच्छि पलंबकुच्छि पहसियपयालिय, पयडियगत्तं ) इस की आँखों की ललाई खद्योत (आग्या ) के समान दीप्त थी, उरस्थल ( छाती ) इस का भयोत्पादक था, पेट विस्तीर्ण और लंबा था । शरीर इस का प्रहसित प्रचलित एवं श्लथी भूत ढीला था । यह उस समय, (पणच्चमाणं अफोडतं, अभि. वयंतं अभिगज्जंतं, बहुसो २ अट्टहासे विणिम्मुयंत) नृत्य कर रहा था। अपनी दोनों भुजाओं का आस्फालन ( बजाता ) कर रहा था। ऐसा ज्ञात होता था कि मानों गर्जना करता हुआ समक्ष (सामने ) ही તેનું નાક નાનું અને ચપટું હતું. તેની બંને ભમ્મરે વિકૃત ખડબચડી म न उता. अथवा मुनमान मने 4-त्रांसी-उती. (खज्जोयगदित्तचक्खुरागं उत्तासणगं विसालवच्छं, विसालकुच्छि पलंब कुच्छि, पहसिय पयालिय, पयडियगत्तं ) તેની આંખોની રતાશ આગિયા જેવી ચમકતી હતી. તેનું વક્ષસ્થળ ભયંકર હતું. પેટ વિશાળ અને લાંબું હતું. તેનું શરીર પ્રહસિત, પ્રચલિત અને શલથી ભૂત એટલે કે લબડી ગયેલું હતું. ત્યારે. (पणच्चमाणं अप्फोडतं अभिवयंत, अभिगज्जतं, बहुसो २ अट्टहासे विणिम्मुयंत) તે નાચી રહ્યો હતો. પોતાના બંને ભુજાઓનું તે આસ્ફાલન (અફળાવવું) શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૨
SR No.006333
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size47 MB
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