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________________ ८० भगवतीसूत्रे सेवर होज्जा' उत्तरगुणानां दशविधपस्याख्यानानां प्रतिसेवको विराधको भवेत् 'उत्तरगुणं पडि सेवमाणे दस विहस्स पचक्खाणस्स अन्नयरं पडि सेवेज्जा' उत्तरगुणं प्रतिसेवमानो दर्शवित्रस्य दशमकारकस्य प्रत्याख्यानस्य अन्यतमं किमपि एकं प्रत्याख्यानं प्रतिसेवेत विराधयेदित्यर्थः । 'पडिसेवणाकुसीले जहा पुलाए' प्रतिसेवना कुशीलो यथा पुलाकः, प्रतिसेवनाकुशीलः प्रतिसेवको भवेत् नो अतिसेवको भवेत् तत्रापि मूळगुणं प्रतिसेवमानः पञ्चवाणामन्यतमं प्रतिसेवेत उत्तरगुणं प्रतिसेवमानो दशविधस्य प्रत्याख्यानस्य मध्यात् कमपि एकविधं प्रत्याख्यानं प्रतिसेवेतेति भावः । 'क.सायकुसीलेणं पुच्छा' कषायकुशीलः खलु उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं- गोत्रमा णो मूलगुणपडि सेवए होज्जा, उत्तरगुणपड सेयर होज्जा' हे गौतम! बकुश साधु मूलगुणों का विरा धक नहीं होता हैं किन्तु उत्तरगुगों का विरोधक होता है। 'उत्तर गुणं पडि सेवमाणे दसविहस्स पच्चक्खाणस्स अन्नयरं पडि सेवेज्जा' उत्तरगुणों का जब यह विराधक होता है तो उस समय यह १० प्रकार के प्रत्याख्यानों में से किसी एक प्रत्याख्यान का विराधक होता है. 'पड़िसेवणाकुसीले जहा पुलाए' पुलाककी तरह प्रतिसेवना कुशील विराधक होता है अविराधक नहीं होता है । विराधक अवस्थामें वह मूलगुणों का भी विराधक होता है और उत्तरगुणों का भी विराधक होता है मूलगुणों की विराधना में यह पांच आस्रवों में से किसी एक आस्रव का सेवन करता है और जब यह उत्तरगुणों का विराधक होता है तब यह १० प्रकार के प्रत्याख्यानों में से किसी भी एक प्रत्यारूपान होज्जा' उत्तरगुण डिसेबए होज्जा' हे गौतम! अङ्कुश साधु भूतगुणना प्रतिसेव હાય છે? કે ઉત્તરગુણુના પ્રતિસેવક હાય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી छे - 'गोय्मा ! णो मूलगुणपडिरेवए होज्जा, उत्तरगुणपडिसेवए होज्जा' ગૌતમ ! અકુશ સાધુ મૂળગુણેના વિરાધક હાતા નથી પરંતુ ઉત્તરગુણેાના વિરાધક डाय छे 'उत्तर गुणपडि सेवमाणे दसविहरुल पच्चक्खाणस्स अन्नयर पडि सेवेज्जा' જયારે તે ઉત્તરગુડ્ડાના વિરાધક હાય છે તેા તે વખતે તેએ ૧૦ દસ પ્રકારના अत्याच्याना पैडी अर्ध पशु प्रत्यायानना विशेष होय छे. 'पडिसेवणा कुनीले जहा पुला साना उधन अभावे अतिसेवना कुशीस विराध होय छे. અવિરાધક હાતા નથી. વિરાધક અવસ્થામાં તે મૂલગુાના પણ વિરાધક હોય છે અને ઉત્તરગુણ્ણાના પણ વિાષક હોય છે. મૂળાની વિરાધનામાં તે પાંચ આસા પૈકી કોઈ એક આસ્રવનુ સેવન કરે છે અને જયારે તે ઉત્તર ગુણાના વિાષક હાય છે, ત્યારે છે ૧૦ પ્રકારના પ્રત્યાખ્યાના પૈકી કાઈ પણુ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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