SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका ०२५ उ.६१०२ षष्ठं प्रतिसेवनाद्वारनिरूपणम् ७९ इत्याचावश्यकप्रसिद्धम् अनन्यतमम् एकं प्रत्याख्यानं प्रतिसेवेत विराधयेदित्यर्थः, उपलक्षणं चैतत् तेन पिण्डविशुद्वयादि विराधकत्वमपि संभाव्यते इति । 'बउसेणं पुच्छा' बकुशः खलु भदन्त ! प्रतिसेवको विराधको भवेत् अप्रतिसेवकोऽविराधको वा भवेदिति पृच्छा प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'पडिसेबए होज्जा णो अपडि सेवए होजना प्रतिसेवको भवेत् नो अपतिसेवको भवेदित्युत्तरम् 'जइ पडिसेवए होज्जा किं मूलगुणपडि सेवए होजा उत्तरगुणपडिसेवए होना' हे भदन्त ! यदि प्रतिसेवको भवेत् तर्हि किं मूलगुणप्रतिसेवको मूलगुणानां विराधको भवेत् अथवा उत्तरगुणप्रतिसेवको भवेदिति प्रश्नः। भगवानाह'गोयमा' इत्यादि। 'गोयमा' हे गौतम ! 'णो मूलगुणपडि से वए होज्जा' मूलगुणानां पाणातिपातविरमणादीनां पतिसेवको विराधको न भवेत् किन्तु 'उत्तरगुणपडिइत्यादिरूप से पहिले व्याख्यात हो चुके हैं अथवा-'णवकारपोरसीए' इत्यादि रूप से ये आवश्यक में प्रसिद्ध हैं। सो इनमें से यह किसी एक प्रत्याख्यान का विराधक होता है। अतः यह उत्तागुग विराधक कहा गया हैं। यह उत्तरगुण विराधक पिण्ड विशुद्धि आदि गुणों का भी विराधक होता है। ऐसा भी इस कथन से संभावित होता है। 'बउ. सेण पुच्छा' है भदन्त। बकुश साधु क्या विराधक होता हे ? अथवा अविराधक होता है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोंयमा! पडि. सेवए होज्जा णो अप्पडिसेवए होज्जा" है गौतम! बकुश साध प्रति सेवक विराधक होता है अविराधक नहीं होता है । 'जह पडिसेवए होज्जा किं मूलगुणपडिसेवए होज्जा उत्तरगुणपडिसेवए होज्जा.' हे भदन्त ? यदि वह प्रतिसेवक होता है तो क्या वह मूलगुणों का प्रतिसेवक होता है अथवा उत्तरगुणों का प्रतिसेवक होता है ? इसके विगैरे ३५थी ५ वामां मावेस छ. मथ। 'णवकारपोरसीए' त्या३५ થી આવશ્યકમાં તે પ્રસિદ્ધ છે. તે આમાંથી કેઇ એક પ્રત્યાખ્યાનના વિરાધક હોય છે. તેથી તે ઉત્તરગુણ વિરાધક કહેવાય છે. આ ઉત્તરગુણ વિરાધકે પિંડ વિશદ્ધ વિગેરે ગુણોના પણ વિરાધક હોય છે. એમ પણ આ કથનથી સંભवित थाय छे. 'बउसेणं पुच्छा' 8 भगवन यश साधु शुं विराध डाय छे. अथवा अविराध डाय छ १ ॥ प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री ४ छ-कोयमा! पडिसेवए होज्जा णो जप्पडिसेवए होज्जा' गीतम ! ५श साधु प्रतिसेयर विहाय छे. भविष होत नथी 'जइ पडि सेवए होज्जा कि मूलगुणपडिसेवए होज्जा उत्तरगुण पडिसेवर होज्जा' 3 लापन ने त प्रतिसेव हाय છે, તે શું તે મૂળાના પ્રતિસેવક હોય છે? કે ઉત્તરગુણેના પ્રતિસેવક डाय छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री छ -'गोंयमाणो मूलगुणपडिसेवए શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy