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________________ ५४ भगवर्ती सूत्रे ज्ञानदर्शनलिङ्गानि यः क्रोधादिभिर्युनक्ति, ज्ञानादिकुशीलः कषायतो भवति विज्ञेयः || १ || यः कषायात् शापं प्रयच्छति स चारित्रे कुशलो । मनसा क्रोधादीन्निषेवमाणो भवति यथासूक्ष्मः ॥२॥ अथवाऽपि यस्तु कपायैज्ञनादीनां विराधकः । स ज्ञानादि कुशीलो ज्ञेयो व्याख्यानभेदेन | ३|| इति । 'णियंठे णं भंते ! कवि पन्नत्ते' निर्ग्रन्थः खलु भदन्त ! कतिविधः प्रज्ञप्त इति प्रश्नः । भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम! 'पंचविहे पत्ते' पञ्चविधः प्रज्ञप्तो निर्ग्रन्थ इति 'तं जहा ' तद्यथा 'पढमसमयणियं ठे' प्रथमसमयनिर्ग्रन्थः, उपशान्तमोहाद्धायाः क्षीण मोहन्छमस्थाद्वापाश्च अन्तर्मुहूर्त इनमे जो ज्ञान दर्शन और लिङ्ग का क्रोध मान आदि कषायों में उपयोग करता है वह ज्ञानकषाय कुशील दर्शनकषाय कुशील और लिङ्गकषाय कुशील है। जो कषाय से शाप ( श्राप) आदि देता है वह चारित्र कषाय कुशील है और जो मात्र मन से क्रोधादि कषायों का सेवन करता है वह यथासूक्ष्म कषाय कुशील हैं । अथवा कषायों द्वारा जो ज्ञानादि को दूषित करता है वह ज्ञानादि कषाय कुशील कहा गया है सो ही कहा है- 'णाणदंसणलिंगे जो' इत्यादि । 'णियं भंते! कइविहे पन्नन्ते' हे भदन्त । निर्ग्रन्थ कितने प्रकार का कहा गया है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-"गोयमा ! पंचविहे पन्नो' हे गौतम ! निर्ग्रन्थ पांच प्रकार का कहा गया है- 'तं जहा ' 'जैसे- 'पढमसमय नियंटे' प्रथम समय निर्ग्रन्थ १-उपशान्तमोह और લિંગનું જે ક્રોધમાન વિગેરે કાર્યેામાં ઉપયાગ કરે છે. તે જ્ઞાન કષાય કુશીલ દન કષાય કુશીલ, અને લિંગ કષાય કુશીલ છે. જે કષાયથી શ્રાપ–વિગેરે આપે છે. તે ચારિત્ર કષાય કુશીલ છે અને જે માત્ર મનથી ક્રોધ વિગેરે કાયાનુ સેવન કરે છે. તે યથાસૂક્ષ્મ કષાય કુશીલ છે. અથવા કષાયા દ્વારા જ્ઞાન વિગેરેની વિરાધના કરે છે, તે જ્ઞાનાદિ કષાય કુશીલ કહેવાય છે. ड्युछे- 'णाणदंसणलिंगे जो' इत्याहि 'नियंटे णं भंते ! कहविहे पन्नन्ते' हे भगवन् निर्थ था डेटा प्रहारना उडया हे ? या प्रश्नना उत्तरमा अलुश्री डे - ' गोयमा पंचविहे पन्नत्ते' गौतम ! निर्ग्रन्थ पांच अारना ठडया छे. 'त जहा' ते या प्रभा 'पढमसमयनियंठे' प्रथम सभय निर्मन्थ १ उपशान्तमोड भने श्रीशुभेोडना શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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