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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.७ १०११ ध्यानस्वरूपनिरूपणम् ४८५ कम् तथा न विद्यते विचारः अर्थव्यञ्जनयो रितरस्मादितरत्र तथा मनोवाक्काय. योगानाम् अन्यस्मादन्यत्र यस्य तदविचारि द्वितीय शुक्लध्यानमिति । 'सुहुम किरिय अनियट्ठी' सूक्ष्म क्रियाऽनिवर्ति, सूक्ष्मा क्रिया यत्र मनोवाग्योगयोः सर्वथा निरुद्धत्वात् तथा काययोगे बादरकाययोगस्य निरोधकरणात् सूक्ष्म क्रियं तथा पश्चान्न निवर्तते इत्यनिवर्ति, बर्द्धमानपरिणामत्वात् एतच्च निर्वाणगमनकाले केवल. ज्ञानवतामेव भवेदिति सूक्ष्मक्रियाऽनिवति तृतीय शुक्लध्यानमिति । 'समुच्छिन्नकिरियप्पडिवाई' समुच्छिन्नक्रियाऽपतिपाति, समुच्छिन्ना सर्वथा निरूद्धा (पद) रूप अथवा अर्थरूप विकल्प है वह एकत्व वितर्क है तथा एक अर्थ से अर्थान्तर रूप एक व्यञ्जन से व्यञ्जनान्तर रूप एवं एक योग से योगान्तर रूप संक्रमण का जिस ध्यान में अभाव है वह अविचारी है। ऐसा जो ध्यान है वह एकत्व वितर्क अविचारी ध्यान है। तीसरा शुक्लध्यान 'सुहमकिरिय अनियट्टी सूक्ष्म क्रियाऽनिवृत्ती है। इसका तात्पर्यऐसा है कि मनोयोग और वाग्योग के सर्वथा निरुद्ध हो जाने से तथा बादर काययोग का काययोग में निरोध करने से जो ध्यान सूक्ष्मक्रिया वाला है और जो वर्द्धमान परिणाम होने के कारण (अनि. यट्ठी-अनिवृत्ति) पीछे छूटता नहीं है इस कारण जो अनिवृत्ति रूप है ऐसा जो ध्यान है वह मूक्ष्मक्रिया अनिवृत्ति शुक्लध्यान है। यह ध्यान निर्वाण गमन काल में केवल ज्ञान वालों को ही होता है। 'समुच्छिन किरिय अप्पडिवाई' चौथा शुक्लध्यान का भेद समुच्छिन्नक्रिया
વ્યંજન (પદ) રૂપ અથવા અર્થરૂપ વિકલ્પ છે, તે એક વિતરું કહેવાય છે. તથા એક અર્થથી અર્થાન્તર રૂપ એક વ્યંજનથી વ્યંજનાન્તર રૂપ અને એક પેગથી ગાન્તરરૂપ સંક્રમણને જે ધ્યાનમાં અભાવ હોય તે અવિચારી કહેવાય છે. એવું જ ધ્યાન હોય તે એકવ વિતર્ક અવિચારી ધ્યાન છે. ૨
श्री शुसध्यान या प्रमाणे छे. 'सुहुमकिरिय अनियट्टी' सूक्ष्मठिया અનિવૃત્તિ આનું તાત્પર્ય એ છે કે-
મગ અને વચનગને સર્વથા નિરોધ થઈ જવાથી તથા બાદરકાયને કાયગમાં નિરોધ થવાથી જે સૂક્ષમ ठियावाणु ध्यान डाय छ, भने २ वध भान परिणाम पाथी 'अनियट्टीअनिवृत्ति' पछीथी छूटतु नयी तथा मनिवृत्ति ३५ उपाय छे, मेधुं २ ધ્યાન છે, તે સૂકમક્રિયાવાળું અનિવૃત્તિ ધ્યાન કહેવાય છે. આ ધ્યાન નિર્વાણ (मोक्ष) पान समयमा विज्ञानवाजामाने थाय छे. 'समुच्छिन्न किरियअप्पडिवाई' शुसध्यान याथी म समुन्नि या मप्रतिपाति
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬