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भगवतीसूत्रे त्याग इति प्रश्ना, भगवानाह-रसारिच्चाए अणेगविहे पन्नत्ते' रसपरित्यागो. ऽनेकविधा-अनेकपकारकः प्रज्ञप्ता-कथितः, 'तं जहा' तद्यथा-'निबिगिइए' निर्विकृतिका-घृतादिरूपविकृति पदार्थपरिवर्जनम् ‘पणीयरसविवज्जए' प्रणीतरसविवर्जकः गलघृतबिन्दु भोजनाभाववान् इत्यर्थः। 'जहा उववाइए जाव लूहा. हारे' यथोपपातिके यावद्रूक्षाहारः, यथोपपातिके इत्यनेन इदं सूचितम्, 'आयं विलए आयामसिस्थभोई अरसाहारे विरसाहारे अंताहारे पंताहारे' इति, 'सेत्तं रसपरिच्चाए' सैष रसपरित्याग इति। ‘से किं तं कायकिले से' अथ कः सः ___'से किं तं रसपरिच्चाए' हे भदन्त ! रसपरित्याग कितने प्रकार का है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'रसपरिच्चाये अणेगविहे पण्णत्ते' हे गौतम ! रस परित्याग अनेक प्रकार का कहा गया है। 'तं जहा' जैसे'निधिगिइए' घृतादिरूप विकृतियों का त्याग करना-'पणीयरसविधज्जिए' स्निग्धरसवाला भोजन नहीं करना 'जहा उववाइए जाव लहाहारे' इत्यादि जैसा औपपातिक सूत्र में कहा गया है वैसा ही यहां यावत् रूक्षाहार करना चाहिए इस प्रकरण तक जानना चाहिये। इससे यह भी सूचित होता है कि आयंबिल करना, सिक्य भोजन करना, अरस आहार करना, विरस आहार करना, अन्तआहार करना, प्रान्त आहार करना यह सब इस रस परित्यागवत में आता है। 'सेत्तं रसपरिच्चाए' इस प्रकार से यह रस परित्याग है । 'से कि तं कायकिलेसे' हे भदन्त ! कायक्लेश कितने प्रकार का होता है ? उत्तर में प्रभुश्री
से कित' रसपरिच्चाए' 8 मापन २सपरित्या 21 प्रा२न डस छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री छ -'रसपरिचाए अणेगविहे पण्णत्ते' उ गौतम ! २४५रित्या अने: प्रा२न ४ छे. 'तौं जहा' ते माप्रमाणे छे-निविगिइए' धी विगेरे विकृतियाना (वय ५४ाना) त्या श्व.. 'पणीयरसविवज्जिए' नि५ २सवाणे आहार न ४२३। 'जहा उववाइए जाव लूहाहारे' त्याहि मी५५ाति सूत्रमारे प्रमाणे ४ामा भाव छ. मेर પ્રમાણે અહિયાં યાવત્ રક્ષાહાર કરે આ પ્રકરણ સુધી સમજવું જોઈએ. આ કથનથી એ પણ સમજાય છે કે-આયંઘિલ કરવું સિનગ્ધ ભજન કરવું, અરસ આહાર કર, વિરસ આહાર કરે, અન્ત આહાર કરે, પ્રાન્ત આહાર કરે, આ સઘળાને સમાવેશ આ રસ પરિત્યાગ વ્રતમાં થઈ જાય छ. 'से त्त रसपरिचाए' मा शते मा २४ परित्यागनु थन ४२ छ. 'से कि तकायकिलेसे लव यश या ना डाय छ १ मा
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬