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________________ ४३६ भगवतीसो भाषावमोदरिका । ‘से तं ओमोयरिया' सैषा अबमोदरिका कथितेति । 'से किं २ मिक्खायरिया' अथ का सा भिक्षाचर्या इति प्रश्नः, भगवानाह-भिक्खायरिया अणेगविहा पनत्ता' भिक्षाचर्या अनेकविधा अनेक प्रकारिका प्रज्ञप्ता-कथिता इति । 'तं जहा' तद्यथा-'दव्वाभिम्गहचरए' द्रव्याभिग्रहचरकः, भिक्षाचर्या मिक्षाचर्यावतोश्वाभेदविवक्षया द्रव्याभिग्रहचरको भिक्षाचयो इति कथ्यते द्रव्याभिमहाश्च लेप कृतादिद्रव्यविषया ज्ञातव्या इति । 'जहा उववाइए' जाव सुद्धेसणिए, संखादत्तिए' यथा औपपातिके यावत् शुद्धेषणीयः संख्यादत्तिकः, औपपातिकस्य अल्पबोलना, धीमे बोलना, क्रोध में निरर्थक बहुत प्रलाप नहीं करना तथा हृदयस्थ क्रोध कम करना यह सब भाव ऊनोदरिका के पकार हैं। यहां तक अवमोदरिका का कथन किया गया है। से किं तं भिक्खायरिया' हे भदन्त ! भिक्षाचर्या कितने प्रकार की है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'भिक्खायरिया अणेगविहा पण्णत्ता' हे गौतम ! भिक्षाचर्या अनेक प्रकार की कही गई है-'तं जहा' जैसे'दश्वाभिग्गहचरए' द्रव्याभिग्रह चरक-यहां भिक्षाचर्या और भिक्षाचर्या बाले में अभेद विवक्षित हुआ है, इसलिये द्रव्याभिग्रह चरक को मिक्षाचर्या शब्द से कह दिया गया है। द्रव्याभिग्रह लेपकृतादि इध्यविषयक होते हैं । 'जहा उपवाइए जाव सुद्धेसणिए संखादत्तिए' जैसा कि औषपातिक सूत्र के पूर्वाध के तीसवें सूत्र में यावतू शुद्धपणीय संख्यादत्तिक तक इसका वर्णन किया गया है। अतः वहां से ધીરે બોલવું કોધથી અર્થ વગરને બકવાદ ન કરે અને હૃદયમાં ક્રોધ એ છે કર આ તમામ ભાવ અમેરિકાના પ્રકારે છે. આ રીતે આ અમેરિકાનું કથન આટલા સુધી કરેલ છે. से कि त भिक्खायरिया' 8 लगवन् लक्षायर्या सारनी ही ७१ 20 प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री गौतमस्वामीन छ है-'भिक्खायरिया अणेगविहा पण्णत्ता' गौतम ! लिक्षायर्या भने प्रा२नी ही छ. 'तजहा' तमा प्रमाणे छ. 'दव्वाभिग्गहचरए' द्रव्यामिह य२४-मडिया लिखाया અને ભિક્ષાચર્યા કરવાવાળામાં અભેદની વિવક્ષા કરી છે. તેથી દ્રવ્યાભિગ્રહ ચરકને ભિક્ષાચર્યા શબ્દથી કહેલ છે. દ્રવ્યાભિગ્રહ લેપકૃત વિગેરે દ્રવ્ય વિષયपाप डाय छे. 'जहा उववाइए जाव सुद्धेसणिए संखादत्तिए' भोपयाति सूत्रमा જે પ્રમાણે ઔપાતિક સૂત્રને પૂર્વાર્ધના ત્રીસમાં સૂત્રમાં યાવત્ શુ શ્વેષણય સંખ્યાદત્તિક સુધી તેનું વર્ણન કરેલ છે. જેથી તે વર્ણન ત્યાંથી જોઈ લેવું શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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