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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.७ ५०९ प्रायश्चित्तप्रकारनिरूपणम् ४३५ अल्पलोभवान् पुरुषो भावावमोदरिको भवति अत्र यावत्पदेन मानमाययोहणं भवति तथा च अल्पक्रोधवान् अल्पमायावान् अल्पमानवान् अल्पलोभवान् भावतोऽवमोदरिको भवतीति । 'अप्पसद्दे' अल्पशब्दः, राज्यादावसंयत जागरणभयादल्पशब्द इति भावः । 'अप्पझंझे अल्पझंझा, झंझाऽत्र विपकीर्णा कोपविशेषात् वचनपद्धतिः, यद्वा झंझा-अनर्थक बहुपलापिता तद्रहित इति, येन येन गणस्य -संघस्य वा छेदो भवति तादृशशब्दस्याप्योक्ता इति । 'अपतुम तुमे अल्प तुमं तुमः, तुमं तुमो हृदयस्थः कोपविशेष इति । 'से तं भावोमोयरिया' सैषा, जाव अप्पलोभे' अल्पक्रोधवाला यावत् अल्पलोभवाला जो पुरुष होता है वह भाव ऊनोदरिका वाला कहाजाता है। यहां यावत्पद से मान माया का ग्रहण हुआ है। तथा च-अल्पक्रोधवाला मनुष्य अल्पमानवाला, अल्पमायावाला और अल्प लोभवाला मनुष्य भाव की अपेक्षा अवमोदरिक होता है। 'अप्पसदे, अप्पझंझे, अपतुमं तुमे, सेत्तं भावोमोयरिया' इसी प्रकार रात्रि आदि में असंयत पुरुषों के जगजाने के भय से जो थोडा बोलता है, कोपविशेष से जोर २ से बोली गई वाणी का नाम झंझा है। अथवा-अनर्थक बहुत बकवाद करना इसका नाम झंझा है। ऐसी वाणी से रहित जो होता है वह अल्प झंझा वाला है। अथवा जिस जिस शब्द के बोलने से गण का अथवा संघ का विच्छेद हो जावे ऐले शब्द का जो प्रयोग नहीं करता है वह अल्प झंझा वाला है 'अप्पतुमं तुमे हृदयस्थकोंप विशेष का नाम तुम तुम है हृदयस्थ कोप को कम करना यह अल्प तुम तुम है। इस प्रकार ક્રોધવાળા અને યાવત અલ્પ માનવાળા, અ૫ માયાવાળા અને અલ્પ લેભવાળા મનુષ્ય ભાવની અપેક્ષાથી અવમદરિકા કહેવાય છે. અહિયાં માન, भाया ये पह। यावत् शपथी अप या छ. 'अप्पसहे, अप्पझंझे, अप्प तुम तुमे, सेत्त भावोंमोयरिया' सारी रात्री बिगेरेमा मयत ५३षान! onvil જવાના ભયથી જેઓ ડું બેલે છે, ક્રોધથી જોર જોરથી બોલાયેલ વાણીને ઝંઝા કહે છે. અથવા નિરર્થક વધારે પડતે બકવાદ કરે તેને “ઝંઝા કહે છે. એવી વાણી જે બેલતો નથી તે “અલ્પ ઝંઝા' કહેવાય છે. અથવા જે કઈ એવા શબ્દ બલવાથી ગણુ અગર સંઘને વિચ્છેદ થઈ જાય એવા शण्टोन प्रयो॥ २२॥ २नथी. a स६५ वा ४२वाय छे. 'अप. तुम तुमे' या २७ लोध विगेरेने तुम'तुम ४९ छे. इयमा २९ अपन કમી કરે છે, તે અલ્પ તુમકુમ કહેવાય છે. આ રીતે થોડું બોલવું, ધીરે શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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