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________________ भगवतीसूत्र तथा 'दुवालस जहा सत्तमसए पढमोहेसए नो पगामरसभोइत्ति वत्तन्वं सिया' द्वादश० इति द्वादश कुक्कुटाण्डपमाणकवलाहारं कुर्वन् मध्यमाहारो मुनि र्भवतीति यथा सप्तमशत के प्रथमोद्देशके यावत् नो प्रकामरसमोजीति वक्तव्यं स्यादिति । 'से तं भत्तपाणदव्योमोयरिया' सैषा भक्तपानद्रव्यावमोदरिका कथितेति । 'से तं दबोमोयरिया' सैषा द्रव्यावमोदरिकेति । ‘से किं तं भावोमोयरिया' अथ का सा भावावमोदरिका भावावमोदरिकाया कियन्तो भेदा भवन्तीति प्रश्नः, भगवानाह-'भावोमोयरिया अणेगविहा पन्नत्ता' भावावमोदरिका अनेकविधा मजता 'तं जहा' तद्यथा-'अप्पकोहे जाव अपलोभे अल्पक्रोधो यावद् अल्पलोभः, वाला मुनि कहलाता है 'दुवालस० जहा सत्तमसए पढमोद्देसए जाव नो पकामरसभोहति वत्तव्वं सिया' तथा जो बारह ग्रास का आहार लेता है-अर्थात् मुर्गीके १२ अंडा प्रमाण जो ग्रासों का भोजन लेता है वह मध्यम आहार वाला मुनि कहलाता है । इत्यादि जैसा कि सप्तम शतक के प्रथम उद्देशक में कहे गये अनुसार योवत् वह प्रकामरस भोजी नहीं कहलाता है ऐसा कहा गया है-इसी प्रकार से यहां पर कह लेना चाहिये। 'सेतं भत्तपाणदव्योमोयरिया' इस प्रकार से यह भक्तपान द्रव्य ऊनोदरिका है। यहां तक 'सेत्तं दव्योमोयरिया' यह द्रव्य ऊनोदरिका का कथन किया 'से कि तं भावोमोयरिया' हे भदन्त ! भाव ऊनोदरिका कितने प्रकार की कही गई है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं.-'भावोमोयरिया अणेगविहां पण्णत्ता' हे गौतम! भाव ऊनोदरिका अनेक प्रकार की कही गई है 'तं जहा जैसे-'अप्पकोहे जहा सत्तमसए पढमोदेसए जाव नो पकामरसभोइत्ति वत्तव्व सिया' तारे બાર કાળીયાને આહાર કરે છે, અર્થાત્ કુકડીના બાર ઇંડાના પ્રમાણુ જેટલા કોળીયાઓને જે આહાર કરે છે, તે મુનિ મધ્યમ આહારવાળા કહેવાય છે. જે પ્રમાણે સાતમા શતકના પહેલા ઉદ્દેશામાં કહેલ છે તે પ્રમાણે યાવતુ પ્રકામભેજી કહેવાતા નથી. તે પ્રમાણે કહેવામાં આવેલ છે.-એજ રીતે અહિયાં પણ हु न . 'से त भत्तपाणदव्योमोयरिया' मा प्रमाणे मतदान द्रव्य અવમોદરિકાનું કથન કરેલ છે. से कि त भावोमोयरिया' 3 सपना अपमाहटमा प्राश्नी हेस छ ? 20 प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री गीतमाभान ४ छ -'भावोमो. यरिया अणेगविहा पन्नत्ता' हे गौतम! माप समा२ि४. मने प्रारना हे छे. 'तजहा' ते मी प्रमाणे छे.-'अप्पकाहे जाव अप्पलोहे' ५६५ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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