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________________ ५३२ भगवतीसो द्विविधं भवतीति, 'से कि त उवगरणदब्रोमोयरिया' अथ का सा उपकरणद्रव्यावमोदरिका एतस्याः कियान भेदो भवतीति प्रश्नः भगवानाह-'उचगरणदव्यो. मोयरिया तिविहा पन्नत्ता' उपकरणद्रव्यावमोद रिका निविधा प्रज्ञप्ता, 'तं जहा' तथा 'एगे वत्थे' एकं वस्त्रम् एकस्यैव वस्त्रस्य संयमयात्रानिहायोपकरणम् एकं वस्त्रनामकं तपः। 'एगे पाए' एकं पात्रम् एकमेव पात्रं संघमयात्रानिहाय यत्र भवेत् । 'चयत्तोषगरणसाइजणया' त्यक्तोपकरणस्वदनता त्यक्तस्य उपकरणजातस्य स्वदनता-एरिभोगः गृहस्थोपभुक्तवस्वपात्राद्युपकरणानाम् उपभोगकरणमित्यर्थः । अथवा 'जं वत्यं धारेइ तंमि वि ममत्त नत्थि, जइ कोइ मगाइ तस्स देई' यद्वस्त्रं धारयति स्वशरीरे तस्मिन्नपि ममत्वं नास्ति यदि कोऽपि याचते तदा तस्मै उपकरणद्रव्यावमोदरिका और भक्तपानद्रव्यावमोदरिका इस प्रकार पान द्रव्य ऊनोदरिका और उपकरण द्रव्य ऊनोदरिका के भेद से द्रव्य ऊनोदरिका नाम का तप दो प्रकार का होता है । 'से कि तं उवगरणदोग्योमोरिया' हे भदन्त ! उपकरण द्रव्य ऊनोदरिका कितने प्रकार की है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'उवगरण दव्वोमोयरिया तिविहा पन्नत्ता' हे गौतम ! उपकरण द्रव्य ऊनोदरिका तीन प्रकार की कही गई है। 'तं जहा' जैसे-'एगे वत्थे एगे पाए चियत्तोवगरणसाइज्जणया' 'एक वस्त्र, एक पात्र और स्यक्त.पकरण स्वदनता-गृहस्थजनों के द्वारा उपभुक्त वस्त्र पात्र आदिकों का उपभोग करना अथवा 'जं वत्थं धारेह तमि वि ममत्तं नस्थि, जइ कोइ मग्गइ, तस्स देइ' जिस वस्त्र को स्व. शरीर पर उसने धारण कर रखा है उसमें भी उसे ममत्व नहीं होता, दव्योमोयरिया य' ५३२५ द्रव्य समाहरित मने मी मतान द्रव्याમેદરિકા આ રીતે ઉપકરણ દ્રવ્ય અવમેદરિકા અને ભક્તપ્રત્યાખ્યાન દ્રવ્ય અવમોદરિકાના ભેદથી દ્રવ્ય અમેરિકા નામનું તપ બે પ્રકારનું કહેલ છે. 'से कि त उवगरणदव्योमोयरिया' 3 समपन् ७५४२५ द्रव्य अपमा४ि। ट। प्रारी छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रमुश्री छे -'उवगरणदव्योमोयरिया तिविहा पन्नत्ता' हे गीतम! 6५४२६३ द्रव्य अवाहरित प्रारनी ४स छ, 'तं जहा' त म प्रभारी छ-'एगे वत्थे एगे पाए चियत्तोवगरणसाइजणया' એક વસ, એક પાત્ર, અને એક ત્યક્તોપકરણ સ્વદનતા–એટલે કે ગૃહસ્થાએ ભગવાને અર્થાત્ ઉપયોગ કરીને ત્યાગ કરેલા વસ્ત્ર પાત્ર વિગેરેને ઉપભેગ ४२व अयवा 'जवत्थंधारेइ तमि वि ममत्त नत्थि, जइ कोइ मग्गइ तस्स देइ' જે વસ્ત્રને પિતાના શરીર ઉપર તેણે ધારણ કરેલા છે, તેમાં પણ તેને મમ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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