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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.७ सू०५ विंशतितम परिणामद्वारनि० ३४९ मुहूर्त्तम् उत्कर्षेणापि अन्तर्मुहूर्तमेव वर्द्ध मानपरिणामो भवेद् यथ ख्यात संयतः, यथाख्यातसंयतः खलु केवलज्ञानमुत्पादयिष्यति ततो यश्च शैलेशीपतिपन्न स्तस्ययद्धमानपरिणामो जघन्यत उत्कृष्टतश्चान्तमुहूर्तममाण एव भवति तदुत्तरकाले तद्वयवच्छेशदिति । 'केयइयं कालं आट्ठियपरिणाम होज्जा' यथाख्यातसंयतः खलु भदन्त ! कियन्तं कालमवस्थितपरिणाम: स्थिरपरिणामो भवेदिति प्रश्न:, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि 'गोयमा' हे गौतम ! 'जहन्ने ण एक्कं समयं' :जघन्येन एकं समयं यावद् यथाख्यातसंयतोऽवस्थि उपरिणामे भवेत् उपशमादायाः प्रथमसमयानन्तरमेव तस्य मरणात् । 'उकोसेणं देखूणा पुषकोडी' अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं वि अंतमुहुत्त' हे गौतम! जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट से भी एक अन्तर्मुहूर्त तक यथाख्यात संयत वर्द्धमान परिणामों वाला होता है। क्योंकि यथाख्यातसंयत केवलज्ञान उत्पन्न करेगा इसलिये जो यथाख्यातसंथत शैलेशी प्रतिपन्न होता है उसका वर्द्धमान परिणाम जघन्य से और उत्कृष्ट से अन्त. मुहर्त प्रमाणवाला ही होता है । क्यों कि उसके उत्तरकाल में उसका व्यवच्छेद हो जाता है । 'केवयं कालं अवट्टियपरिणामे होज्जा' हे भदन्त ! यथारख्यातसंयत कितने काल तक अवस्थित परिणामों वाला होता है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोधमा ! जहन्नेणं एक्कं समय हे गौतम ! यथारूपातसंयत जघन्य से एक समय तक अवस्थित परिणामों वाला होता है, क्यों कि उपशम काल के प्रथम समय के बाद ही उसका मरण हो जाता है । और 'उक्कोसेणं देखणा पुधकोडो' उत्तरमा प्रभुश्री गीतमस्वामीन 8 -'गोयमा! जहण्णेण अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं' के गौतम ! धन्यथा मे अतभुत सुधी भने ઉત્કૃષ્ટથી પણ એક અંતમુહૂર્ત સુધી યથાખ્યાત સંયત વર્ધમાન પરિણામેવાળા હોય છે કારણ કે-યથાખ્યાત સંત કેવળજ્ઞાન પ્રાપ્ત કરશે તેથી જે યથાખ્યાત સંયત શૈલેશી અવસ્થાવાળા હોય છે, તેમને વર્ધમાન પરિણામ જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટથી અંતમુહૂર્ત પ્રમાણનું હોય છે. કારણ કે-તેમના उत्तर म a भवस्थानी व्य र (1) 25 mय छे. 'केवइय काल अवढियपरिणामे होज्जा' लगवन् यथाभ्यात सयत टक्षा सुधी भव. સ્થિત પરિણામેવાળા હોય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે કે'गोयमा ! जहण्णेणं एकक समय” 3 गौतम! यथास्यात यत धन्यथा એક સમય સુધી અવસ્થિત પરિણામેવાળા હોય છે. કેમકે-ઉપશમ કાળના पडसा समय पछी तमनु भ२५ / य छे. सन 'उकोसेणं देसूणा શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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