SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 322
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०८ भगवतीसूत्रे प्रप्नोतीत्यर्थ इति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'देवगई गच्छ' देवगतिं गच्छति सामायिकसंयतः कालगतः सन् देवगतिम वाप्नोतीत्यर्थः । 'देवगई गच्छमाणे किं भरणवासिसु उववज्जेज्जा' देवगति गच्छन् किं भवनवासि देवेषुत्पद्येत अथवा 'वाणमंतरेसु उववज्जेज्जा' वानव्यन्तरेषूत्पद्येत अथवा 'जोइसिएसु उज्जेज्ना' ज्योतिष् के पूरपद्येत 'वेमाणिएसु उबवज्जेज्जा' वैमानिकेत्पद्येत सामायिक संपतः किल कालगति कृत्वा देवगतौ गच्छन् कतमस्मिन् देवलोके समुत्पद्यते इति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम! 'णो भवणवातीस उववज्जेज्ज' भवनवासिषु नोत्पद्यन्ते 'जहा कसायकुतीले यथा कषायकुशीलः कषायकुशीलप्रकरणव देव भदन्त ! सामायिक संयत मरण कर किस गति में जाता है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'गोमा देवगच्छ, हे गौतम! सामायिकसंयत मरण कर देवगति में जाता है । 'देवगई गच्छमाणे किं भवणवासिसु उवब ज्जेज्जा' वागमं नरेलु उज्जेन' हे भदन्त ! सामायिक संयत मरण करने के बाद देवगति को प्राप्त करता है तो क्या वह भवनवासियों में उत्पन्न होता है ? वानव्यन्तरों में उत्पन्न होता है ? अथवा 'जोइसिएस उववज्जेज्ज।' ज्योतिष्क देवों में उत्पन्न होता है ? अथवा 'वैमाणिएसुउबबज्जेज्जा' वैमानिकदेवों में उत्पन्न होता है ? इस प्रश्न का तात्पर्य केवल इतना सा ही है कि सामायिक संघत काल करके देवगति में भी कौन से देवलोक उत्पन्न होता है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा ! नो भवणवासी उववज्जेज्जा' जहा कसायकुसीले' हे गौतम! भवनवासी वानव्यन्तर ज्योतिष्कों में नहीं उत्पन्न होना है इत्यादि कषायकुशील गए समाणे किं गईं गच्छइ' हे भगवन् सामायिक संयंत भरीने अर्ध गतिमां लय छे ? 'देवराई' गच्छमाणे किं भवणवा सिसु उववज्जेज्जा, वाणमंतरेसु उबवज्जेज्जा' हे भगवन् सामायिक संयंत भर याभ्या पछी देवगति आप्त रे છે, તેા શું તે ભવનવાસીએમાં ઉત્પન્ન થાય છે ? અથવા વાનન્યન્તરામાં उत्यन्न थाय छे ? अथवा 'जोइसिएसु उबवज्जेज्जा' ज्योतिष्ङ हेवामां उत्पन्न थाय छे ? अथवा 'वेमाणिएसु उववज्जेज्जा' वैमानिक हेवामां उत्पन्न थाय છે? આ પ્રશ્નનું તાત્મય એ છે કે-સામાયિક સંયત કાળ કરીને દેવગતિ પૈકી કઇ દેવગતિમાં ગમન કરે છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે કે'गोमा ! नो भवणवाखीसु उबवज्जेज्जा जहा कसायकुसीले ' डे गौतम ! लवनવાસી, વાનભ્યન્તર અને ચૈાતિÈામાં ઉત્પન્ન થતા નથી. કષાય કુશીલના શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy