SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 286
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७२ भगवतील अकर्मभूमौ भवेत् कर्मभूमौ भवेत् १ गौतम ! जन्मसभावं च प्रतीत्य कर्मभूमा पषा बकुशः। एवं छेदोपस्थापनिकोऽपि । परिहारविद्धिकश्च यथा पुलाकः शेषा यथा सामायिकसंयतः ॥ २॥ टीका-'सामाइयसंजएणं भंते !' सामायिकसयतः खलु भदन्त !"f सवेयर होज्जा अवेयए होज्जा' किं सवेदको भवेत् अवेदको वा भवेदितिपश्ना, भगवानाह -'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'सवेयए वा होजा-अवेयए वा होजा' सवेदको वा भवेत् अवेदको वा भवेत् सामायिकसंयतः सवेदको भवेद् अवेदकोऽपि भवेत नवमगुणस्थानके वेदस्योपशमः क्षयो वा भवति अतोऽत्रावेदको भवति, एतपूर्वपत्तिगुणस्थान केषु तु सामायिकसंयतः सवेदको भवति नवमगुणस्थानकपर्यन्तं दूसरा वेदद्वार का कथन 'सामाझ्यसंजमेणं भंते! कि सवेयए होज्जा अवेयए होजा' इत्यादि, टीकार्थ-गौतमस्वामी ने प्रभुश्री से ऐसा पूछा है-'सामाइयसंजए गं भंते ! कि सवेयए होज्जा अवेयए होज्जा' हे भदन्त ! सामायिक संयत वेवाला होता है ? अथवा वेदरहित होता है ? उत्तर में प्रभुश्री ने कहा है-गोयमा ! सवेयए वा होज्जा, अवेयए वा होज्जा' हे मौतम ! सामायिक संयत वेवाला भी होता है और वेदरहित भी होता है। सामायिक संयत नौवें गुणस्थानक तक कहा जाता है, वेद का नौवें गुणस्थानक में उपशम अथवा क्षय होता है । नौवें से नीचे के गुण. स्थानों में जब सामायिक संयत रहता है तब वह वेद वाला कहलाता है और नौवें में वह उसके उपशम अथवा क्षय कर देने पर अवे. दक कहलाता है। इसीलिये यहां उत्तर में प्रभुश्री ने ऐसा कहा है कि હવે બીજા વેદદ્વારનું કથન કરવામાં આવે છે.– 'सामाइयसंजए णं भंते ! किं सवेयए होज्जा, अवेयए होज्जा' या टी -श्रीगोतमस्वामी प्रभुश्रीन मे पछयु छ -'सामाइय संजए णं भंते ! किं सवेयए होज्जा अवेयए होज्जा' सावन् सामायिसयत દિવાળા હોય છે? અથવા વેદ વિનાના હોય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં श्री गीतभस्वामीन 'छ -'गोयमा। सवेयए वा होज्जा, अवेयए वा होज्जा' ३ गौतम ! सामायि: सयत वहाणा डाय छ, मन वह વિનાના પણ હોય છે. સામાયિક સંયત નવમાં ગુણસ્થાનક સુધીનાઓ કહે. વાય છે. વેદનાઓને નવમાં ગુણસ્થાનકમાં ઉપશમ અથવા ક્ષય થાય છે. નવમાંથી નીચેના ગુણસ્થાનોમાં જ્યારે સામાયિક સંયત રહે છે, ત્યારે તે દવાળા કહેવાય છે. અને નવમામાં તે વેદને ઉપશમ અથવા ક્ષય કરી શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy