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ममेयचन्द्रिका टीका श०२५७.७०२ द्वितीय वेदद्वारनिरूपणम् २७३ सामायिकसयतत्वस्य व्यपदेशादिति । 'जह सवेयए एवं जहा कसायकुसीले तहेब. निरवसेसं' यदि सवेदको भवेत् एवं यथा कषायकुशीलस्तथैव निरवशेष ज्ञातव्यम् यदि सवेदको भवेत् त्तदा-स्त्रीवेदोऽपि भवेत् पुरुषवेदोऽपि भवेत् नपुंसकवेदोऽपि भवेत् अवेदस्तु क्षीणोपशान्तवेदइत्यर्थः । एवं छेदोक्ट्ठावणियसंनए वि' एवं सामा. यिकसंयतवदेव दोपस्थापनिकसंयतोऽपि सवेदकोऽपि अवेदकोऽपि भवेत् यदि सवेदकस्तदास्त्रीवदेको भवेदिति, नवमगुणस्थान के अवेदकोऽपि भवेत् छेदोपस्थापनीयसंयत इति । 'परिहारविसुद्धिकसंजओ जहा पुलाए' परिहारविशुद्धिक संयतो यथा पुलाकः, पुलाकादेव परिहारविशुद्धिकसंयतः पुरुषवदवेदको मवेत् यह सवेद भी होता है और अवेद भी होता है । 'जह सवेयए एवं जहा कसायकुसीले तहेव निरवसेसं' यदि वह सवेद-वेदसहित होता है तो इस सम्बन्ध में समस्त कथन कषायकुशील के कथन जैसा जानना चाहिये अर्थात् यदि वह वेदसहित होता है तो वह स्त्रीवेदवाला भी हो सकता है पुरुषवेद वाला भी हो सकता है और पुरुषनपुंसक वेदवाला भी हो सकता है और यदि वह अवेद-वेद रहित है तो वह उपशान्तवेवाला हो सकता है और क्षीण वेदवाला भी हो सकता है। ___ 'एवं छेदोवडावणियसंजए वि' इसी प्रकार से छेदोपस्थापनिक संयत भी वेद सहित होता है और वेद रहित भी होता है ऐसा जानना चाहिये । यदि वह वेदसहित है तो वह तीनों वेदवाला हो सकता है और यदि वेदरहित है तो वह नौवें गुणस्थान में अवेदक भी होता है। 'परिहारविसुद्धिक संजओ जहा पुलाए' परिहारविशुद्धिक संयत નાખવાથી અવેદક કહેવાય છે. તેથી જ અહિયાં ઉત્તર વાકયમાં પ્રભુશ્રીએ એવું કહ્યું છે કે તે સવેદ પણ હોય છે. અને અવેદ પણ હોય છે. ___'जइ सवेयए एवं जहा कसायकुसीले तहेव निरवसेस' ने त सव:વેદસહિત હોય તે તે સંબંધમાં સઘળું કથન કષાય કુશીલના કથન પ્રમાણે સમજવું. જે તે સવેદ હોય તે તે સ્ત્રીવેદવાળા પણ હોય છે, અને પુરુષ
દવાળા પણ હોય છે, તથા નપુંસક વેદવાળા પણ હોય છે. અને જે તે વેદ વિનાના હોય તે તે ઉપશાન્ત વેદવાળા હોઈ શકે છે. અને ક્ષીણ વેદ. पाणाडा छ. ‘एवं छेदोवद्वावणियसंजए वि' से प्रभारी ऐहो५.
સ્થાપનીય સંયત પણ વેદસહિત હોય છે. અને વેદરહિત પણ હોય છે. તેમ સમજવું. જે તે વેદસહિત હોય તે તે ત્રણે વેદવાળા હોઈ શકે છે. અને જે यह विनाना डाय तो त नवा शुश्स्थानमा अवे पाय छे. 'परिहारसिद्धिकसंजओ जहा पुलाए' परिहार विशुद्धि सयतमा वहनु उथन पसा
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬